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ISRO की बढ़ गई टेंशन, 100वें मिशन को लग गया बड़ा झटका

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बेंगलुरु

ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के 100वें रॉकेट मिशन को झटका लगा है। खबर है कि बुधवार को लॉन्च हुए मिशन को रविवार को तकनीकी परेशानी का सामना करना पड़ा है। 2250 किलो वजनी सैटेलाइट नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टलेशन या NavIC का हिस्सा थी। माना जाता है कि NavIC सीरीज की कई सैटेलाइट्स 2013 से लेकर अब तक उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं।

ISRO के NVS-02 उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के प्रयासों को उस समय झटका लगा जब अंतरिक्ष यान में लगे ‘थ्रस्टर्स’ काम नहीं कर सके। स्पेस एजेंसी ने रविवार को घटना की जानकारी दी है। इसरो ने अपनी वेबसाइट पर कहा कि अंतरिक्ष यान में लगे ‘थ्रस्टर्स’ के काम नहीं करने के कारण एनवीएस-02 उपग्रह को वांछित कक्षा में स्थापित करने का प्रयास सफल नहीं हो सका।

भारत की अपनी अंतरिक्ष-आधारित नेविगेशन प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले एनवीएस-02 उपग्रह को 29 जनवरी को जीएसएलवी-एमके 2 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसरो ने यह भी कहा, 'सैटेलाइट सिस्टम स्वस्थ हैं और सैटेलाइट फिलहाल एलिप्टिकल ऑर्बिट में है। एलिप्टिकल ऑर्बिट में नेविगेशन के लिए सैटेलाइट के इस्तेमाल के लिए मिशन की वैकल्पिक रणनीतियों पर काम किया जा रहा है।' खबरें हैं कि साल 2013 के बाद से अब तक NavIC सीरीज की कुल 11 सैटेलाइट लॉन्च की गई हैं, जिनमें से 6 पूरी या आशिंक रूप से असफल हो गई हैं।

भारत ने साल 1999 में पाकिस्तान के साथ करगिल युद्ध के बाद NavIC को विकसित किया था। युद्ध के दौरान भारत को GPS डेटा देने से इनकार कर दिया गया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने GPS का एक क्षेत्रीय संस्करण बनाने का वादा किया था।

क्‍या था इसरो का प्‍लान?
इसरो के सूत्रों का कहना है कि सेटेलाइट को कक्षा में स्थापित करने के बाद वो फायर करने में विफल रहा. इसरो ने कहा, “सेटेलाइट सिस्‍टम एक दम हेल्दी है और वो मौजूदा वक्‍त में अण्डाकार कक्षा में है. अण्डाकार कक्षा में नेविगेशन के लिए उपग्रह का उपयोग करने के लिए वैकल्पिक मिशन रणनीतियों पर काम किया जा रहा है.” इसरो का NVS-02 सेटेलाइट को पृथ्वी के चारों ओर एक अण्डाकार कक्षा में स्थापित करने का इरादा था. बताया गया था कि इसकी अपोजी यानी सबसे दूर का बिंदू 37,500 किमी रहेगा जबकि पेरीजी यानी निकटतम बिंदू और 170 किमी की होगी. 29 जनवरी को GSLV द्वारा बहुत सटीक इंजेक्शन ने सेटेलाइट को एक ऐसी कक्षा में स्थापित कर दिया था जो लक्ष्‍य किए गए अपोजी से 74 किमी और पेरीजी से 0.5 किमी दूर थी.

भारत के लिए क्‍यों अहम है यह मिशन?
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (INSACI)आईएनएसपीएसीई) के अध्यक्ष पवन कुमार गोयनका ने लॉन्‍च के वक्‍त कहा था, ‘‘यह मिशन भारत की अंतरिक्ष एक्‍सप्‍लोरेशन की दशकों पुरानी विरासत और हमारे भविष्य के संकल्प को भी दर्शाता है. निजी प्रक्षेपणों के साथ-साथ, मैं अगले पांच वर्षों में अगले 100 प्रक्षेपणों को देखने के लिए उत्सुक हूं.’’ हैदराबाद स्थित अनंत टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के सीएमडी सुब्बा राव पावुलुरी ने कहा था कि 100वां प्रक्षेपण न केवल इसरो की तकनीकी क्षमता का उत्सव है, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की बढ़ती क्षमताओं का भी प्रदर्शित करता है. ‘‘पिछले कुछ वर्षों में हमें इसरो के अनेक मिशनों में योगदान देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जहां हमने अत्याधुनिक वैमानिकी, प्रणालियां और समाधान उपलब्ध कराए हैं, जिन्होंने इन प्रयासों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’’

इसरो ने क्या कहा, पहले यह जान लीजिए

इसरो के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि एनवीएस-02 उपग्रह को उसकी मनचाही कक्षा में स्थापित करने के इसरो के प्रयासों को झटका लगा है। दरअसल, अंतरिक्ष यान के थ्रस्टर को एक्टिव नहीं किया जा सका है। एनवीएस-02 उपग्रह भारत के स्वदेशी अंतरिक्ष-आधारित नेविगेशन सिस्टम यानी नाविक के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे 29 जनवरी को जीएसएलवी-एमके 2 रॉकेट से श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।

थ्रस्टर्स को फायर करने के लिए वॉल्व नहीं खुल पाए

इसरो के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि किसी भी सैटेलाइट को एक तय कक्षा में स्थापित किया जाता है। इसरो के इस सैटेलाइट को भी तय ऑर्बिट में ही कायम किया जाना था। मगर, वक्त पर इसके थ्रस्टर्स फायर नहीं कर पाए। ये थ्रस्टर्स एक तरह से छोटे-छोटे रॉकेट होते हैं। इनमें ऑक्सीडाइजर को प्रवेश देने वाले वॉल्व नहीं खुल पाए, जिससे फायरिंग नहीं हुई। दीर्घवृत्ताकार ऑर्बिट में नेविगेशन की खातिर सैटेलाइट का उपयोग करने के लिए वैकल्पिक मिशन रणनीतियों पर काम किया जा रहा है।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक कवर करेगा इसरो

इससे पहले ISRO ने बताया था कि NVS-02 को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित कर दिया गया है। यह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम का हिस्सा है, जो भारत में GPS जैसी नेविगेशन सुविधा को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसरो के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि यह सिस्टम कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से अरुणाचल तक का हिस्सा कवर करेगा। साथ ही साथ कोस्टल लाइन से 1500 किमी तक की दूरी भी कवर होगी। इससे हवाई, समुद्री और सड़क यात्रा के लिए बेहतर नेविगेशन हेल्प मिलेगी।

अभी किस स्थिति में है नाविक सैटेलाइट

विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, सैटेलाइट अब अंडाकार भू-समकालिक स्थानांतरण कक्ष (GTO) में पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है, जो नेविगेशन सिस्टम के लिए ठीक नहीं है। इसरो ने कहा, सैटेलाइट सिस्टम ठीक है और सैटेलाइट मौजूदा वक्त में अंडाकार ऑर्बिट में है। यह ऑर्बिट में नेविगेशन के लिए सैटेलाइट का उपयोग करने के लिए वैकल्पिक मिशन रणनीतियों पर काम किया जा रहा है।