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दुनियाभर में हर साल एक करोड़ से ज्यादा मौतें हाई ब्लडप्रेशर के कारण होती हैं

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नई दिल्ली

क्या आपको पता है कि दुनिया में होने वाली हर आठ में से एक मौत का कारण वायु प्रदूषण होता है? एक तरह से वायु प्रदूषण तंबाकू से भी ज्यादा खतरनाक होता है.

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में दुनियाभर में तंबाकू की वजह से अनुमानित 75 से 76 लाख मौतें हुई होंगीं. जबकि, वायु प्रदूषण के कारण 81 लाख मौतें. यानी, दुनिया में 12% मौतों का कारण जहरीली हवा है. वहीं, दुनियाभर में हर साल एक करोड़ से ज्यादा मौतें हाई ब्लडप्रेशर के कारण होती हैं.

ये बातें इसलिए चिंता बढ़ाती हैं, क्योंकि राजधानी दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) का स्तर 500 के करीब पहुंच गया है. यानी अब यहां AQI 'गंभीर' की श्रेणी में आ गया है. जब ये 'गंभीर' की श्रेणी में आ जाता है तो अच्छे-खासे तंदरुस्त लोग भी बीमार पड़ सकते हैं.

ये रिपोर्ट बताती है कि सबसे बड़ा रिस्क PM2.5 है. PM2.5 का मतलब है 2.5 माइक्रोन का कण. ये बहुत ही महीन कण होता है. इसे ऐसे समझिए कि ये इंसान के बाल से भी 100 गुना ज्यादा पतला होता है. ये इतना छोटा है कि नाक और मुंह के जरिए हमारे शरीर में घुस जाता है. जैसे ही ये हमारे शरीर में आता है तो दिल और फेफड़ों को प्रभावित करता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में PM2.5 के कारण 78 लाख मौतें हुई थीं. यानी, वायु प्रदूषण के कारण जितनी मौतें हुई थीं, उनमें से 96 फीसदी से ज्यादा की वजह यही कण था. इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण होने वाली 90 फीसदी से ज्यादा बीमारियों का कारण भी यही छोटा सा कण होता है.

सबसे खतरनाक PM2.5

2024 की स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण जहरीली हवा ही थी. सबसे ज्यादा खतरा साउथ एशियाई और अफ्रीकी देशों पर है. रिपोर्ट से पता चलता है कि 81 लाख मौतों में से 58 फीसदी की वजह वातावरण में मौजूद प्रदूषण रहा. जबकि, 38 फीसदी मौतें घरों के अंदर मौजूद प्रदूषण की वजह से हुई थीं.

चिंता बढ़ाने वाली बात ये है कि पांच साल से छोटे बच्चों की मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण भी वायु प्रदूषण ही है. इतने छोटे बच्चों की मौतों की सबसे बड़ी वजह है. जबकि, वायु प्रदूषण के कारण 2021 में पांच साल से छोटे 7 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी. इतना ही नहीं, साउथ एशिया और अफ्रीकी देशों में जन्म के बाद पहले महीने में होने वाली 30 फीसदी से ज्यादा मौतों का कारण भी जहरीली हवा ही है.

भारत के लिए कितना बड़ा खतरा?

एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल तंबाकू की वजह से 10 लाख के आसपास लोग मारे जाते हैं. जबकि, वायु प्रदूषण के कारण 21 लाख लोग मारे गए थे. यानी, लगभग दोगुना.

इस हिसाब से देखा जाए तो भारत में हर महीने औसतन 1.75 लाख और हर दिन 5,753 लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है.

अकेले भारत में ही पांच साल से कम उम्र के 1.69 लाख बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो गई थी. ये आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा था. दूसरे नंबर पर नाइजीरिया था, जहां 1.14 लाख बच्चों की मौत हुई थी. पाकिस्तान में 68 हजार से ज्यादा बच्चे मारे गए थे.

रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण के कारण होने वाले अस्थमा 5 से 14 साल की उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है. 15 फरवरी 2013 को लंदन की रहने वालीं 9 साल की एला किस्सी-डेब्रा की मौत अस्थमा अटैक से हो गई थी. वो दुनिया की पहली शख्स हैं, जिनके डेथ सर्टिफिकेट में मौत की वजह 'वायु प्रदूषण' दर्ज है.

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में सबसे जहरीली हवा साउथ एशियाई देशों में है. वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में जितनी मौतें हुई थीं, उनमें आधी से ज्यादा सिर्फ भारत और चीन में हुई थी. चीन में 23 लाख तो भारत में 21 लाख लोगों की मौत का कारण वायु प्रदूषण था.

हवा में मौजूद PM2.5 सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि इससे बेमौत ही लोग मारे जा रहे हैं और हार्ट डिसीज, लंग कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं. भारत में हर एक लाख आबादी में से 148 की मौत का कारण वायु प्रदूषण है. ये वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा है.

PM2.5 में नाइट्रेट और सल्फेट एसिड, केमिकल, मेटल और धूल-मिट्टी के कण होते हैं. ये कण इतने छोटे होते हैं कि फेफड़ों में काफी अंदर तक घुस सकते हैं और गंभीर रूप से बीमार कर सकते हैं. इस कारण दिल और फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे लोगों की मौत भी हो सकती है. जबकि, स्वस्थ लोगों को इससे हार्ट अटैक, अस्थमा और फेफड़ों से जुड़ी बीमारी हो सकती है.

इसी साल जनवरी में एक स्टडी आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि दुनियाभर में PM2.5 की सबसे ज्यादा मात्रा भारत में है. वहीं, दिल्ली में इसकी मात्रा सबसे ज्यादा है. इस स्टडी में दावा किया गया था कि सर्दी के मौसम में भारत में घर के अंदर की हवा बाहर की हवा से 41% ज्यादा प्रदूषित होती है.

हाल ही में साइंस जर्नल लैंसेट में एक स्टडी छपी थी. स्टडी में बताया गया था कि शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण नॉन-स्मोकर्स में लंग कैंसर के खतरे को बढ़ा रहा है.