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क्या आप जानते हैं, अमरनाथ गुफा में कबूतर का जोड़ा क्यों बैठा रहता है? आइए जानें इसका रहस्य?

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नई दिल्ली, 01जुलाई। अमरनाथ हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और हर साल यहां लाखों की संख्या में शिव भक्त दर्शन के लिए आते हैं. अमरनाथ यात्रा को बहुत ही कठिन माना गया है और कहते हैं कि इस कठिन यात्रा को पार कर जब बाबा बर्फानी के दर्शन होते हैं तो व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. अमरनाथ गुफा में हर साल बर्फ से अद्भुत शिवलिंग का निर्माण होता है और इसलिए इसे स्वंयभू भी कहा जाता है. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमर होने की कथा सुनाई थी और इसलिए इसे अमरत्व के नाम से भी जाना जाता है. जब भी अमरनाथ यात्रा या अमरनाथ गुफा की बात आती है तो गुफा में मौजूद एक कबूतर जोड़े का जिक्र जरूर होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इस गुफा में यह जोड़ा हमेशा क्यों बैठा रहता है? आइए जानते हैं इसके पीछे छिपे रहस्य के बारे में.

अमरनाथ गुफा का रहस्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार अमरनाथ की इस पवित्र गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था. इस दौरान भोलेनाथ और माता पार्वती के बीच एक संवाद हुआ था. कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से मोक्ष का मार्ग जानने की उत्सुकता जताई. जिसके बाद भोलेनाथ उन्हें लेकर एकांत में गए जहां कोई अन्य इस संवाद को ना सुन सके. जब भगवान शिव यह अमृतज्ञान माता पार्वती को सुना रहे थे तो उस समय वहां एक कबूतर का जोड़ा उसी गुफा में मौजूद था. उस जोड़ें ने भी मोक्ष के मार्ग से जुड़ी वह कथा सुन ली. कहते हैं कि इस कथा को सुनने के बाद यह कबूतर को जोड़ा अमर हो गया और आज तक इस गुफा में मौजूद है.

सबसे आश्चर्य की बात है कि अमरनाथ गुफा में या उसके आस-पास ऑक्सीजन की कमी है और खाने-पीने के साधन भी नहीं है. बावजूद इसके यह कबूतर वहां रहते हैं. कहा जाता है कि बाबा बर्फानी के दर्शन के बाद अगर इस कबूतर जोड़े के दर्शन हो जाएं तो बहुत ही शुभ माना जाता है.

एक अन्य कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव माता पार्वती को अमृतज्ञान सुना रहे थे तो उस गुफा में एक शुक यानि हरी कंठी वाला तोता भी मौजूद था जो कि यह ज्ञान सुन रहा था. कथा सुनते समय माता पार्वती को नींद आ गई. ऐसे में उनकी जगह वह शुक कथा के दौरान हुंकार भरने लगा. जब भगवान शिव को यह बात पता चली तो वह शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा.

शुक अपनी जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा और फिर व्यासजी के आश्रम में आ गया. जहां वह सूक्ष्म रूप धारण कर व्यासजी की पत्नी के मुख में घुस गया और उनके गर्भ में रह गया. पौराणिक कथा के अनुसार 12 वर्ष तक वह शुक उसी गर्भ में रहा. एक बार भगवान कृष्ण ने स्वंय आकर शुक को आश्वासन दिया कि बाहर आने पर तुम्हारे ऊपर माया को कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसके बाद वह गर्भ से बाहर निकला और व्यास जी का पुत्र कहलाया. शुक ने गर्भ में ही वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था. गर्भ से बाहर आते ही वह तपस्या के लिए और बाद में शुकदेव मुनि के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध हुए.