केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा तैयार योजना
जैव विविधता संरक्षण और मानव कल्याण के लिए समग्र रूप से लैंडस्कैप को समेकित करने की योजना
ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप योजना से 3 वन्यजीव अभयारण्यों के बीच संपर्क को मजबूत करके इसमें बाघ रखने की क्षमता बढ़ने की उम्मीद है
जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के सचिव श्री पंकज कुमार ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और अन्य संबंधित संगठन के अधिकारियों की उपस्थिति में आज ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप के लिए एकीकृत लैंडस्केप प्रबंधन योजना की अंतिम रिपोर्ट जारी की। इस एकीकृत लैंडस्कैप प्रबंधन योजना को भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) ने केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में तैयार की है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. के. रमेश के नेतृत्व में परियोजना दल ने उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करके व्यापक क्षेत्र कार्य किया, आंकड़ों का विश्लेषण किया और प्रस्तावित गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए स्थान-विशेष के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ सामने आया।
एकीकृत लैंडस्केप प्रबंधन योजना में बाघ, गिद्ध और घड़ियाल जैसी प्रमुख प्रजातियों के बेहतर आवास संरक्षण और प्रबंधन के लिए प्रावधान हैं। यह जैव विविधता संरक्षण और मानव कल्याण, विशेष रूप से वन आश्रित समुदायों के लिए परिदृश्य को समग्र रूप से समेकित करने में मदद करेगा। इससे मध्य प्रदेश में नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य और दुर्गावती वन्यजीव अभयारण्य तथा उत्तर प्रदेश में रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य के साथ संपर्क को मजबूत करके इस परिदृश्य में बाघ रखने की क्षमता में वृद्धि होने की उम्मीद है।
इस एकीकृत लैंडस्कैप प्रबंधन योजना को केन-बेतवा लिंक परियोजना के संदर्भ में तैयार किया गया है जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में केंद्रीय जल मंत्री और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच 22 मार्च, 2021 को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद इसके कार्यान्वयन के लिए दिसंबर, 2021 में भारत सरकार ने मंजूरी दी।
यह परियोजन केंद्र सरकार द्वारा संचालित नदियों को जोड़ने वाली प्रमुख परियोजना है। यह समझौता पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस विज़न को साकर करने के लिए अंतर-राज्य सहयोग की शुरुआत है जिसमें उन्होंने नदियों को जोड़कर पानी को इसके अधिशेष वाले क्षेत्रों से कमी वाले या सूखाग्रस्त क्षेत्रों तक पहुंचाने की बात कही थी। इस परियोजना से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश, दोनों राज्यों में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी की कमी की समस्या से निजात पाने में मदद मिलेगी। इस परियोजना से मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन तथा उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिलों को काफी लाभ मिलेगा।