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धरोहर उप – नियम (बाय-लॉज– एचबीएल) बनाने में राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) की बड़ी छलांग

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मार्तंड मंदिर, कुतुब मीनार, ताजमहल के लिए और अधिक धरोहर उप–नियम (हेरिटेज बाय-लॉज– एचबीएल) बनाए जाएंगे

राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) ने कोविड अवधि (2019 से) के दौरान कुल 126 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों को शामिल  करते हुए 101 धरोहर उप – नियम (हेरिटेज बाय-लॉज– एचबीएल ) तैयार करने का कीर्तिमान बनाए है। यह पिछले दस वर्षों में अंतिम रूप से शामिल 31 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों के लिए तैयार किए गए पांच धरोहर उप – नियम  (हेरिटेज बाय-लॉज– एचबीएल) की तुलना में है और पिछले दो वर्षों के दौरान (हेरिटेज बाय-लॉज की संख्या में 20 गुना वृद्धि को दर्शाता है।

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यह भी उल्लेखनीय है कि प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम (एएमएएसआर) और एनएमए को दिए गए आदेश के अनुसार धरोहर उप – नियम (हेरिटेज बाय-लॉज – एचबीएल ) का काम जिसमें पूरे भारत में 3600 से अधिक केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारकों के पूरे समूह को शामिल किया गया था, को 2012 तक पूरा होना था। राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) के अध्यक्ष, तरुण विजय ने कहा कि प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता और नेतृत्व में धरोहर उप – नियम (हेरिटेज बाय-लॉज – एचबीएल) तैयार करने के कार्य में तेजी आई है और एक संरक्षण वास्तुविद की अध्यक्षता में चार विशेषज्ञों के साथ अलग से एक एचबीएल विभाग बनाया गया है। इस विभाग की बैठकें सप्ताह में तीन बार हो रही हैं। इन बैठकों में देश के हर हिस्से से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक और विशेष रूप से पूर्वी, मध्य और उत्तर भारत से विभिन्न अन्य क्षेत्रीय निदेशकों के साथ ही सर्वेक्षक पुरातत्वविदों को आमंत्रित करना भी शामिल था और जिसके परिणामस्वरूप अंततोगत्वा सर्वेक्षण मानचित्रों का सुचारू प्रवाह और एचबीएल का मसौदा तैयार हो पाया।

एनएमए के अध्यक्ष ने कहा कि राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण में रहते हुए सबसे बड़ी खुशी और संतुष्टि तब महसूस हुई जब हमने मणिपुर में 14वीं शताब्दी के विष्णु मंदिर, पुरी में जगन्नाथ मंदिर; चौसठ योगिनी, जबलपुर; जगतग्राम अश्वमेध स्थल और उत्तराखंड में शिव मंदिरों के लाखा मंडल समूह के लिए धरोहर उप – नियमों  को अंतिम रूप दिया।

प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल अवशेष (एएमएएसआर) (संशोधन सत्यापन) अधिनियम 2010 के प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण का गठन किया गया था और इसे केन्द्रीय प्रतिबंधित और विनियमित क्षेत्रों में संरक्षण क्षेत्रों में संरक्षण और उससे सम्बन्धित  गतिविधि के लिए आवेदकों को अनुमति देने पर विचार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी । शहरीकरण की बढ़ती दर, विकास, बढ़ते जनसंख्या दबाव और साथ ही केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारकों के आसपास की भूमि पर बढ़ते दबाव के चलते एचबीएल की आवश्यकता का अनुभव होता था क्योंकि यह अक्सर बाधित होती थी और स्मारक के 300 मीटर परिधीय क्षेत्राधिकार के सामने भी आती थी। इस स्थिति ने स्मारकों के चारों ओर संपत्ति और उसके  व्यक्तिगत विकास को विनियमित करने के साथ-साथ स्मारकों की रक्षा और संरक्षण की आवश्यकता के कारण इसे संतुलित करने को अनिवार्य बना दिया। ऐसी परिस्थितियों और समय की आवश्यकताओं ने एनएमए द्वारा धरोहर उप- नियमों (एचबीएल) को तैयार करने   में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो नियमित रूप से अपनी वेबसाइट पर इन्हें अधिसूचित करता रहता है और इसकी एचबीएल सामग्री के लिए स्थानीय लोगों से उनकी टिप्पणियों और सुझावों को आमंत्रित करता है।

मोदी सरकार के अंतर्गत धरोहर उप- नियमों (एचबीएल) के काम और अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने में बहुत तेजी आई है।

लोगों से उनकी टिप्पणियों और सुझावों को प्राप्त करने के 30 दिनों की अवधि के बाद उन पर चर्चा की जाती हैI उपयुक्त पाए जाने की स्थति में धरोहर उप- नियमों (एचबीएल) में संशोधन किए जाते हैं और उनकी पुष्टि के लिए इन्हें संस्कृति मंत्रालय को भेजा जाता है उसके बाद  अंतिम स्वीकृति के रूप में संसद द्वारा इनका अनुमोदन किया जाता है।

श्री तरुण विजय ने यह भी टिप्पणी की कि राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) की क्षमता का काफी विस्तार किया गया है क्योंकि अब धरोहर उप – नियम (हेरिटेज बाय-लॉज– एचबीएल) तैयार करने के लिए एनएमए पैनल में कुल 41 नए शीर्ष विरासत निकायों को शामिल किया गया है। एनएमए के अध्यक्ष ने विस्तार से बताया ”धरोहर संरक्षण के एजेंडे को एनएमए की अनिवार्य शर्त के रूप में रखते हुए एक क्रांतिकारी कदम के रूप में यह प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की संकल्पना और मिशन से प्रेरित है। इस तथ्य से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि मोदी सरकार के तहत धरोहर उप – नियम (हेरिटेज बाय-लॉज– एचबीएल) तैयार करने के लिए गठित पैनल में अब 42 विरासत निकाय हैं, जो पहले के केवल 4 से बहुत ऊपर जा रहे हैं।

इन प्रयासों के साथ ही एनएमएओ की उपलब्धियां भी ऐतिहासिक हैं, जो ऑनलाइन सुविधाओं के कारण अनापत्ति प्रमाणपत्रों की विचाराधीनता को शून्य पर ला रही हैं और जैसा कि 1360 में से 1118 अनापत्ति प्रमाणपत्रों (एनओसीज) की 82% स्वीकृति को एक कीर्तिमान के रूप में देखा जा सकता है कि इससे आवेदकों के हितों को ध्यान में रखते हुए प्रिंट पारदर्शिता के लिए इस प्रक्रिया में उल्लेखनीय रूप से तेजी आई है।

वर्तमान में  धरोहर उप – नियम  (हेरिटेज बाय-लॉज– एचबीएल) के मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए में पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) प्रतीक्षा की जा रही है और उन्हें संसद की मंजूरी के लिए भेजने हेतु इसमें ताजमहल; कुतुब मीनार; द्वारकाधीश मंदिर द्वारका; हेमिस गोम्पा, लेह और मार्तंड मंदिर, कश्मीर जैसे स्मारक शामिल किए गए हैं। यह उत्साहजनक है कि अब राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) संसद में मंत्रालय के आश्वासन को पूरा करते हुए इन लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ ही एचबीएल के बचे हुए कार्यों को भी एक वर्ष के भीतर पूरा करने में सक्षम होगा।