उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय के एनईआरसीआरएमएस द्वारा कार्यान्वित सतत आजीविका के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र की नारी शक्ति को सुदृढ़ बनाना है
भारत में सबसे अधिक खेती की जाने वाली अनाज फसलों में चावल एक है, यह पूर्वोत्तर के एक बड़े हिस्से का मुख्य आहार भी है। खेती और कटाई की पारंपरिक हाथ से काम करने या हस्त पद्धति अभी भी प्रचलित है। वे अपने भोजन और आजीविका के लिए अपने सदियों पुराने स्वदेशी चावल उगाने के तरीकों और विधियों को अपनाकर विभिन्न चावल उगाने वाले मौसमों में निचले झील क्षेत्रों से लेकर ऊंची पहाड़ियों की ढलान वाली भूमि तक फैले हुए हैं।
अरुणाचल प्रदेश के दीयुन के ग्राम ज्योत्सनापुर II के उजेबोंग एनएआरएमजी के श्री चित्रा बहू चकमा की पुत्री श्रीमती अर्जुन पुडी चकमा। वह पारिवारिक मामलों के कारण बेघर हो गई। परिवार की आर्थिक स्थिति अविभाज्य थी। बेहतर जीवन की आशा के बिना उसका जीवन संकट में था। एक महीने के बाद उसके रिश्तेदारों ने छोटा सा घर बनाने में उसकी मदद की।
अकेली मां और अकेली कमाने वाली होने के नाते उसने अपने परिवार का सहयोग करने के लिए बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया। उसने दैनिक मजदूरी के रूप में काम करना शुरू किया, जिससे प्रतिदिन केवल 100 या 150 रुपये की मामूली राशि अर्जित की। इतनी कम रकम के कारण वह अपने परिवार की बुनियादी जरूरतों का ध्यान नहीं रख पा रही थी।
जब वर्ष 2018 में गांव में एनईआरसीआरएमएस सामने आया तो उजेबोंग एनएआरएमजी के सभी एनएआरएमजी सदस्यों ने 38,000 रुपये की लागत से एनईआरसीआरएमएस गतिविधि के तहत चावल मिल (छोटे पैमाने पर) के साथ उसका सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की।
चावल मिल से उसकी मासिक आय 6,000 रुपये प्रतिमाह है। वह अपनी दो बेटियों की स्कूली शिक्षा और पारिवारिक आजीविका के लिए उनका सहयोग करती है। उसके पास अब एक सम्माननीय जीवन स्तर है और वह लगातार अपने व्यवसाय के विस्तार के तरीकों की तलाश कर रही है।