
नई दिल्ली
कलकत्ता उच्च न्यायालय के जस्टिस जॉयमाल्य बागची को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस नियुक्त किया गया। सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने उनका नाम 6 मार्च को भेजा था। केंद्र सरकार को कॉलिजियम ने जस्टिस बागची को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्त करने के लिए सिफारिश की थी।जस्टिस जॉयमाल्या बागची 17 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे।
6 साल से अधिक का कार्यकाल
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोशल मीडिया के जरिय एक्स हैंडल से उनकी नियुक्ति के बारे घोषणा की है। जस्टिस बागची सुप्रीम कोर्ट में छह वर्ष से अधिक का कार्यकाल पूरा करेंगे। इस दौरान वे भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में भी कार्य करेंगे। 3 अक्टूबर, 1966 को जस्टिस बागची का जन्म हुआ था। जस्टिस बागची 2 अक्टूबर, 2031 को रिटायर होंगे और इससे पहले वह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी बनेंगे। जस्टिस केवी विश्वनाथन 25 मई 2031 को चीफ जस्टिस के पद से जब रिटायर होंगे उसके बाद जस्टिस बागची भारत के चीफ जस्टिस बनेंगे।
2011 में कलकत्ता हाई कोर्ट में बने जज
जस्टिस बागची को 27 जून, 2011 को कलकत्ता उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 4 जनवरी, 2021 को उनका तबादला आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में किया गया था।बाद में 8 नवंबर, 2021 को वे फिर से कलकत्ता उच्च न्यायालय में लौट आए और तब से वहीं कार्यरत हैं। जस्टिस बागची ने 13 वर्षों से अधिक हाई कोर्ट में सेवा दी है। जस्टिस बागची के शपथ लेने के बाद, सुप्रीम कोर्ट में कुल 33 जस्टिस हो जाएंगे, जबकि कुल सेंक्शन पद 34 हैं।
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस जायमाल्या बागची को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया।
कलकत्ता हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व
18 जुलाई 2013 को जस्टिस अल्तमस कबीर के सेवानिवृत्त होने के बाद से कलकत्ता हाई कोर्ट से कोई भी न्यायाधीश भारत के मुख्य न्यायाधीश नहीं बने हैं।
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट की बेंच में कलकत्ता हाई कोर्ट का केवल एक प्रतिनिधित्व है।
जजों की नियुक्ति
कॉलेजियम प्रणाली
उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण करने वाली संस्था
ना तो संवैधानिक संस्था है और ना ही वैधानिक
उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से स्थापना
प्रथम न्यायाधीश मामला (1981)
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिये उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गयी अनुशंसा को राष्ट्रपति ठोस कारणों के आधार पर अस्वीकार कर सकता है
दूसरा न्यायाधीश मामला (1993)
जजों की नियुक्ति के लिए अनुशंसा मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय से नहीं होगी
उच्चतम न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श लेने के बाद भेजी जाएगी
इस अनुशंसा पर कार्यपालिका अपनी आपत्ति दर्ज करा सकती है
मुख्य न्यायाधीश, कार्यपालिका की आपत्ति को स्वीकार करे या अस्वीकार, उनका निर्णय कार्यपालिका पर बाध्यकारी
तीसरा न्यायाधीश मामला (1998)-
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में अनुसंशा करने से पहले उच्चतम न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम जजों से परामर्श करना होगा
उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य जजों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से सम्बंधित कई विवादों के बाद अब मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर होती है।
उच्चतम न्यायालय में अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम जजों से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेजता है।
यदि 5 में से 2 न्यायाधीश किसी व्यक्ति की नियुक्ति का विरोध करें तो उसके नाम की सिफारिश राष्ट्रपति को नहीं भेजी जाएगी।
सभी न्यायाधीशों की सलाह लिखित रूप में होनी चाहिये, मौखिक नहीं।