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हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि बिना मान्यता के एलएलबी और एलएलएम में प्रवेश देने वाले कॉलेजों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी

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जबलपुर
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के अंतर्गत सेंट्रल लॉ कॉलेज के छात्रों को मान्यता न होने के चलते बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन ना होने के मामले में अब कॉलेज सहित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय पर भी गाज गिर सकती है। हाईकोर्ट ने इसे छात्रों के साथ धोखाधड़ी करार देते हुए भोपाल कमिश्नर को जांच के लिए आदेशित किया है।

बार काउंसिल में एनरोलमेंट ना होने का मामला

जबलपुर हाईकोर्ट में व्योम गर्ग,रागिनी गर्ग, शिखा पटेल एवं अन्य के ने स्टेट वॉर काउंसिल में होने वाले स्टूडेंट्स के एनरोलमेंट नहीं किए जाने पर याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में बताया कि स्टेट वॉर काउंसिल और यूनिवर्सिटी ने एफिलेटेड कॉलेज से लॉ की डिग्री प्राप्त किए जाने के बावजूद भी एनरोलमेंट नहीं किए। साथ ही याचिकार्ताओं ने हाईकोर्ट से मामले में दखल दिए जाने की गुहार लगाई।

कोर्ट के द्वारा पिछली सुनवाई के दौरान लगाई गई थी फटकार

इस याचिका में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की मुख्य बेंच ने राज्य सरकार को याचिका में मौजूद कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी समेत उन सभी कॉलेजों पर जो बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं उन पर कार्रवाई कर उसकी रिपोर्ट को अगली सुनवाई में पेश करने के निर्देश दिए गए थे। जिस पर राज्य सरकार के द्वारा रिपोर्ट पेश नहीं किए जाने पर कोर्ट ने फटकार लगाई। राज्य सरकार में उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना का नोटिस भी कोर्ट ने जारी किया।

राज्य सरकार ने अपना पल्ला झाड़ा

इस याचिका में हुई पूर्व की सुनवाई में सभी प्रतिवादियों की ओर से जवाब दाखिल किया गए। जिसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा कॉलेज(सेंट्रल इंडिया लॉ कॉलेज) के द्वारा मान्यता शुल्क न दिए जाने की वजह से उसे मान्यता नहीं दिए जाने की बात कही गई है। जिस पर सरकार की तरफ से कोर्ट में बताया गया कि इस पूरे मामले में संबंधित यूनिवर्सिटी के द्वारा गलती की गई है। यूनिवर्सिटी ने कॉलेज का वेरिफिकेशन क्यों नहीं किया। जिस पर यूनिवर्सिटी ने यह तर्क दिया गया की बार काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा 2021-22 के लिए जारी कॉलेज की सूची में इस कॉलेज को व्यक्तिगत तौर पर अमान्य नहीं बताया गया था।

कोर्ट ने बताया एडमिनिस्ट्रेटिव फैलियर

अमान्य घोषित नहीं होने की वजह से इसे पोर्टल पर अपलोड किया गया और कॉलेज के द्वारा खुद को एफिलेटेड बताते हुए बच्चों के एडमिशन किए जाने का जवाब कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट के द्वारा सभी तर्कों के आधार पर इस पूरे मामले को एडमिनिस्ट्रेटिव फैलियर माना। हालांकि फिर भी राज्य की तरफ से खुद को गलत ना ठहराते हुए मामले से पल्ला झाड़ता की कोशिश की गई।

चीफ जस्टिस की बेंच ने की सुनवाई

इस याचिका पर सुनवाई चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच ने की। जिसमें सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आए कि नियम अनुसार नए कॉलेजों को प्रोविजनल मान्यता 3 सालों के लिए एवं रेगुलर कॉलेज को यह मान्यता 5 सालों के लिए दी जा सकती है। इसके बाद भी वार काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा कई मामलों में 20 साल बाद भी पूर्वाधार पर मान्यता दी गई है। जिसे कोर्ट ने छात्रों के साथ सीधी तौर पर धोखाधड़ी बताया। उच्च शिक्षा विभाग की ओर से कोर्ट में वीसी के माध्यम से प्रस्तुत हुए उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अनुपम राजन को भी कोर्ट ने फटकार लगाई।

भोपाल कमिश्नर को जांच के आदेश

कोर्ट ने कहा कि अब तक आप लोग क्या कर रहे थे। इसके साथ ही को कोर्ट ने भोपाल कमिश्नर को इस मामले की जांच करने के आदेश दिए हैं और इस जांच में बार काउंसिल को भी भोपाल कमिश्नर की पूरी सहायता करने साथ ही जांच की रिपोर्ट को कोर्ट के समक्ष दो हफ्तों में पेश किए जाने के निर्देश जारी करते हुए इस मामले की अगली सुनवाई 25 मार्च को तय की गई है। इसके बाद जांच रिपोर्ट के आधार पर कॉलेज सहित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय पर भी आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जा सकता है।