Online News Portal for Daily Hindi News and Updates with weekly E-paper

साल 2024 का केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार डेविड बेकर, डेमिस हस्साबिस और जॉन एम. जंपर को दिया गया, की थी प्रोटीन की खोज

26
Tour And Travels

नई दिल्ली
साल 2024 का केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार डेविड बेकर, डेमिस हस्साबिस और जॉन एम. जंपर को दिया गया है. इन तीनों ने मिलकर 50 सालों से चली आ रही वैज्ञानिक पहेली को सुलझाया है. इनकी स्टडी की बदौलत ही कई वैक्सीन और दवाएं बनी हैं. भविष्य में और बेहतर मेडिकल ट्रीटमेंट इनकी स्टडी के आधार पर लोगों को मिलेगा. अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के प्रोफेसर डेविड बेकर कहते हैं कि जिंदगी की शुरूआत जिस स्पर्म या अंडे से होती है. या फिर अकेले अपने दम पर बच्चे पैदा करने वाला जीव ही क्यों न हो. ये सब प्रोटीन से होता है. डेविड बेकर ने अपनी जिंदगी प्रोटीन के नाम कर दी. उन्होंने एकदम नए प्रकार के प्रोटीन खोजे और बनाए. लंदन स्थित गूगल डीप माइंड्स के डेमिस हस्साबिस और जॉन एम. जंपर ने प्रोटीन का आकार पता करने के लिए AI मॉडल बनाया. इससे प्रोटीन को समझने की 50 साल पुरानी समस्या खत्म हो गई. प्रोटीन एक अमेजिंग केमिकल टूल है. यह आपके शरीर में होने वाले सभी रिएक्शन और इमोशन को कंट्रोल करता है.

प्रोटीन ही आपका सबसे बड़ा देवता, यही चलाता है पूरा जीवन
आपको कब गुस्सा आएगा. कब प्यार आएगा. कब आप काम के लिए फोकस होंगे. कब आप बच्चों का प्रजनन करेंगे. ये सारा काम प्रोटीन करता है. ये प्रोटीन्स आपके शरीर में हॉर्मोन्स की तरह काम करते हैं. सिग्नल देने वाले पदार्थ बन जाते हैं. बीमारियों के समय एंटीबॉडी बन जाते हैं. इसके अलावा ऊतकों का निर्माण करने वाले बिल्डिंग ब्लॉक्स भी. प्रोटीन ही दुनिया का सबसे बड़ा बिल्डिंग ब्लॉक है. इससे ही कई प्रकार के जीवन का निर्माण होता है.

आमतौर पर प्रोटीन में 20 प्रकार के अमीनो एसिड्स होते हैं. जो जीवन को चलाते हैं. 2003 में डेविड ने इन्हीं अमीनो एसिड्स की मदद से नया प्रोटीन बनाया. जो पहले से मौजूद किसी प्रोटीन से नहीं मिलता था. तब से लेकर इनका समूह कई प्रकार के प्रोटीन बना चुके हैं. जिनका इस्तेमाल दवा कंपनियां वैक्सीन, नैनोमैटेरियल और सूक्ष्म सेंसर्स बनाने के लिए करते हैं.  इन दोनों साल 2020 में प्रोटीन का AI मॉडल बनाया. जिसका नाम है AlphaFold2. इसकी मदद से 20 करोड़ प्रोटीन्स के ढांचे की स्टडी की जा सकती है. इस मॉडल के जरिए ही कई प्रोटीन्स के आकार और आकृति का पता चला है. इसका इस्तेमाल 190 देशों में 20 लाख से ज्यादा लोग कर रहे हैं.