बीजिंग/नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिप्लोमेसी का असर दिखने लगा है. भारत और चीन के बीच LAC को लेकर दशकों से विवाद चलता आ रहा है. पिछले कुछ सालों से पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी दोनों देशों के बीच विवाद और संघर्ष का नया केंद्र बन गया है. मोदी सरकार इंटरनेशनल फोरम पर गलवान घाटी से सेना को हटाने को लेकर चीन पर लगातार दबाव डालती रही है. मॉस्को में BRICS के सहयोगी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की बैठक में NSA अजीत डोभाल ने चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से भी मुलाकात की थी. अजीत डोभाल ने चीन के अपने समकक्ष वांग यी से LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया था. महत्वपूर्ण मुलाकात के कुछ घंटों के अंदर ही चीन के विदेश मंत्रालय ने गलवान घाटी से अपने सैनिकों को पीछे हटाने की घोषणा कर दी. चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत और चीन ने रूस में हुई बैठक के दौरान द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को लेकर माहौल बनाने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जताई थी.
चीन के विदेश मंत्रालय ने पूर्वी लद्दाख में गलवान समेत 4 बिंदुओं से सैनिकों के पीछे हटने की बात कही है. विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि भारत और चीन ने रूस में अपनी बैठक के दौरान द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को लेकर माहौल बनाने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जताई है. चीन के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, NSA अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने गुरुवार को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में BRICS सदस्य देशों के प्रतिनिधियों की बैठक से इतर बातचीत की. इस दौरान दोनों देशों ने बॉर्डर से जुड़े मसलों पर हाल के विचार-विमर्श में हुई प्रगति पर चर्चा की थी.
4 प्वाइंट से चीनी सेना हटी पीछे
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग से शुक्रवार को पूछा गया कि क्या दोनों देश पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण 4 साल से अधिक समय से द्विपक्षीय संबंधों पर जमी बर्फ को हटाने के करीब हैं? इसपर माओ ने कहा कि दोनों सेनाओं ने 4 क्षेत्रों से वापसी की है और सीमा पर स्थिति स्थिर है. उन्होंने कहा, ‘हाल के सालों में दोनों देशों की फॉरवर्ड फ्रंट पर तैनात सेनाओं ने चीन-भारत सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में 4 प्वाइंट से पीछे हटने का काम पूरा कर लिया है, जिसमें गलवान घाटी भी शामिल है. चीन-भारत सीमा पर स्थिति आमतौर पर स्थिर और नियंत्रण में है.’ उनकी यह टिप्पणी विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा जिनेवा में दिए गए बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन के साथ सैनिकों की वापसी से जुड़ी समस्याओं का लगभग 75 प्रतिशत तक समाधान हो गया है. जयशंकर ने आगे कहा था कि बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ती सेना है.
NSA डोभाल का प्रयास लाया रंग
दिलचस्प है कि डोभाल और वांग भारत-चीन सीमा वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधि हैं. दोनों के बीच हुई बैठक के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने यह विश्वास व्यक्त किया कि चीन-भारत संबंधों की स्थिरता दोनों देशों के लोगों के बुनियादी और लांग टर्म हित में है तथा क्षेत्रीय शांति और विकास के लिए भी उचित है. चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन और भारत ने दोनों देशों के शासनाध्यक्षों के बीच बनी सहमति को जमीन पर उतारने, आपसी समझ और विश्वास को बढ़ाने, निरंतर संवाद बनाए रखने और द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए माहौल बनाने पर सहमति जताई गई है. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के अनुसार, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य वांग ने इस बात पर जोर दिया कि अशांत विश्व का सामना करते हुए दो प्राचीन पूर्वी सभ्यताओं और उभरते विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत को स्वतंत्रता पर दृढ़ रहना चाहिए.
मतभेदों को सुलझाने पर सहमति
वांग ने उम्मीद जताई कि दोनों पक्ष व्यावहारिक दृष्टिकोण के जरिये अपने मतभेदों को सुलझाएंगे और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का उचित तरीका ढूंढेंगे. चीन के विदेश मंत्री ने कहा कि चीन-भारत संबंधों को स्वस्थ, स्थिर और सतत विकास के रास्ते पर वापस लाएंगे. माओ ने बताया कि वांग और डोभाल ने गुरुवार को हुई बैठक के दौरान सीमा मुद्दों को हल करने के लिए हो रहे विचार-विमर्श में हुई प्रगति पर चर्चा की और दोनों देशों के शासनाध्यक्षों के बीच बनी आम सहमति को पूरा करने, आपसी समझ और विश्वास बढ़ाने, द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए परिस्थितियां बनाने और इस दिशा में संवाद बनाए रखने पर सहमति जताई. बैठक में डोभाल ने वांग को बताया कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के प्रति सम्मान द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य स्थिति की वापसी के लिए आवश्यक है.