
नई दिल्ली, 20 जुलाई।पूर्वी दिल्ली में रहने वाले 11 साल के एक लड़के को खांसी की शिकायत बढ़ी तो उसके पैरेंट्स सर गंगाराम अस्पताल ले गए। इस बीच लड़के की तबीयत बिगड़ती गई। उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। हालत ज्यादा खराब हुई तो उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।
डॉक्टर्स को शुरुआती जांच में पता चला कि लड़के के फेफड़ों में सूजन है। फिर मेडिकल स्क्रीनिंग की गई तो नतीजे हैरान करने वाले थे। उसे फेफड़ों की रेयर बीमारी हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (Hypersensitivity pneumonitis या HP) हो गई थी। इसे एक तरह का निमोनिया कह सकते हैं, जो काफी घातक है।
केस स्टडी में पता चला कि लड़के को फेफड़ों की यह गंभीर एलर्जिक समस्या कबूतर की बीट और पंखों के संपर्क में लंबे समय तक रहने के कारण हुई। यह एक रेयर, लेकिन बेहद गंभीर मेडिकल कंडीशन है, जो कई बार जानलेवा भी हो सकती है।आज
बात करेंगे इस रेयर लंग डिजीज हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस की। साथ ही जानेंगे कि-
- हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस क्या लक्षण होते हैं?
- यह दूसरे एलर्जिक रिएक्शंस से कैसे अलग है?
- यह बीमारी होने पर क्या होता है?
- इससे बचाव कैसे कर सकते हैं?
इंसानों ने पक्षियों के घरों में किया कब्जा
दिल्ली नगर निगम और वन विभाग के बीच इस बात पर बहस होती रहती है कि कबूतरों की फैलाई गंदगी को साफ करने की जिम्मेदारी किसकी है। हर बार बात यहां आकर खत्म होती है कि शहर में निजी और सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों ने कब्जा कर लिया है। इसलिए किसी एक के ऊपर जिम्मेदारी डालने की बजाय दोनों को मिलकर इस काम के लिए पैसे देने चाहिए।
हालांकि सच तो यह है कि इंसानों ने जैसे-जैसे विकास और सभ्यता की सीढ़ियां चढ़ीं, जंगल कटते गए और मकान और बहुमंजिला इमारतें बनती गईं। पक्षियों से उनके असली घर यानी पेड़ और जंगल छिन गए। अब कंक्रीट के मकानों की बालकनी और छतों पर बसेरा बनाना उनकी मजबूरी है। यही कारण है कि बहुत से शहरी इलाकों में ये कबूतर एक बड़ी समस्या बन गए हैं। हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस की केस स्टडी के बाद यह समस्या और भी गंभीर नजर आ रही है।