बिहार में पिछले आठ साल से शराबबंदी लागू है, लेकिन इसके बावजूद राज्य में शराब से संबंधित अपराध और दुर्घटनाओं की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। शराबबंदी के बावजूद नकली और जहरीली शराब के कारण मौतों की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। इस धंधे में शामिल लोग पुलिस प्रशासन की निगरानी से बचकर अपने कारोबार को जारी रखे हुए हैं।
खगड़िया में तस्करों का दावा
‘अमर उजाला’ की टीम ने जब खगड़िया के एक इलाके का दौरा किया, जहां पांच साल पहले शराब तस्करों के साथ मुठभेड़ में थानाध्यक्ष को गोली लगी थी, तो वहां के तस्करों ने बताया कि चौकीदार से थाना प्रभारी तक सब मैनेज हैं। यह खुलासा प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
थाना प्रभारी का अनुरोध
14 जुलाई को, जब ‘अमर उजाला’ की टीम ने थाना प्रभारी से इस मामले में बात की, तो उन्होंने गुजारिश की कि खबर छापने से पहले उन्हें छापेमारी करने का मौका दिया जाए। उन्होंने कहा, “खबर छापिएगा तो सब भाग जाएंगे।”
पुलिस की निष्क्रियता
लेकिन, 17 जुलाई को समस्तीपुर में जहरीली शराब का मामला सामने आने के बावजूद पुलिस प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पुलिस प्रशासन में अभी भी लापरवाही और भ्रष्टाचार व्याप्त है।
सिस्टम की परतें खोलने का वक्त
अब बिना किसी और देरी के, यह आवश्यक हो गया है कि सिस्टम की परतें खोली जाएं और इन अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। बिहार में शराबबंदी के बावजूद अवैध शराब का धंधा फल-फूल रहा है, और यह जनता की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
निष्कर्ष
बिहार में शराबबंदी लागू करने के बावजूद, असली, नकली, और जहरीली शराब के कारोबार ने राज्य को एक बड़े संकट में डाल दिया है। प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों और पुलिस की निष्क्रियता के कारण यह धंधा अब भी जारी है। यह समय है कि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें और सख्त कदम उठाकर इस संकट को समाप्त करें। जनता की सुरक्षा और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए, इस समस्या का समाधान तत्काल किया जाना चाहिए।