जेएनयू में “विरोध प्रदर्शन” को “दंडनीय अपराध” घोषित करना निंदनीय : अभाविप
दमनकारी रास्ते पर जेएनयू प्रशासन, छात्र आंदोलन के अधिकारों का हनन : अभाविप
विजय कुमार,
नई दिल्ली 3 मई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जारी किए गए एक ताजा आदेश की कड़ी निंदा करता है। यह आदेश विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों के प्रदर्शन के अधिकार का हनन करता है। विद्यार्थी परिषद का मानना है कि इस आदेश से छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति जताने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। जेएनयू परिसर छात्रों के लिए वह स्थान है जहां विचारों का आदान-प्रदान होता है। जेएनयू जैसे परिषर में छात्रों को अपनी समस्याओं को उठाने और विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार होना चाहिए। यह आदेश जेएनयू वीसी, जेएनयू प्रशासन और डीओएस मनुराधा चौधरी के तानाशाही रवैया को दर्शाता है, जो लगातार छात्रों के आवाज को दबाने का प्रयास कर रहा है।
जेएनयू प्रशासन और डीओएस द्वारा 02 मई को जारी किए गए नए मैनुअल में कहा गया है कि “डीन ऑफ स्टूडेंट्स कार्यालय/इंटर हॉल एडमिनिस्ट्रेशन भवन 100 मीटर के दायरे के अंतर्गत आता है। किसी भी शैक्षणिक और प्रशासनिक परिसर के 100 मीटर के दायरे के भीतर भूख हड़ताल, धरना, समूह का घुसपैठ और किसी अन्य रूप का प्रदर्शन करना या किसी भी शैक्षणिक और प्रशासनिक परिसर के प्रवेश या निकास को अवरुद्ध करना जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों के अनुशासन और उचित आचरण के नियमों (विश्वविद्यालय के विधियों के अधीन संविधि 32(5) के अनुसार) के तहत दंडनीय अपराध है।”
एबीवीपी जेएनयू अध्यक्ष राजेश्वर कांत दूबे ने कहा, “यह प्रशासन छात्रों को उनकी आवाज उठाने से रोकने की कोशिश कर रहा है। यह प्रशासन का तानाशाही रवैया है। हम इस आदेश का पुरजोर विरोध करते हैं। छात्रों को अपनी बात रखने का अधिकार है। यह आदेश छात्रसंघ चुनावों को भी प्रभावित करेगा।”
एबीवीपी जेएनयू की इकाई मंत्री शिखा स्वराज ने कहा, ” छात्रों को अपनी समस्याओं को उठाने और विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है। यह नया नियम विरोध प्रदर्शन को रोकने का एक हथकंडा है। यह प्रशासन छात्रों के हितों की रक्षा करने में विफल रहा है। यह फैसला इस गौरवशाली परंपरा पर सीधा हमला है। हम मांग करते हैं कि इस आदेश को तुरंत वापस लिया जाए।”