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राजस्थान में ब्याज सहित वसूली करने वाले कांग्रेस के नेता लोकसभा का चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहते?

वेणुगोपाल लोकसभा का चुनाव जीते तो राज्यसभा में कांग्रेस की एक सीट कम हो जाएगी।

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सब जानते हैं कि अगस्त 2020 में राजस्थान में कांग्रेस की तत्कालीन सरकार के राजनीतिक संकट के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि जो विधायक एवं मंत्री मेरे साथ होटलों में बंद हैं, उन्हें मैं ब्याज सहित भुगतान करुंगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि गहलोत ने अगस्त 2020 से लेकर अक्टूबर 2023 तक ऐसे मंत्रियों और विधायकों को ब्याज सहित भुगतान किया। ऐसे मंत्रियों और विधायकों ने कई गुना ब्याज वसूलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज यदि इनकम टैक्स वाले ऐसे मंत्रियों और विधायकों की संपत्तियों की जांच करे तो बड़ा खुलासा हो सकता है। सवाल उठता है कि ब्याज सहित कीमत वसूलने वाले कांग्रेस के नेता अब लोकसभा का चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहते? कांग्रेस हाईकमान चाहता है कि राजस्थान में कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़कर पार्टी को मजबूत करे। गत दो बार से राजस्थान में कांग्रेस को सभी 25 सीटों पर हार का सामना करना पड़ रहा है। इस बार कांग्रेस का प्रयास है कि बड़े नेताओं को उम्मीदवार बनाकर कम से कम 8 संसदीय क्षेत्रों में जीत दर्ज की जाए। हाल ही के विधानसभा चुनाव में 11 संसदीय क्षेत्र जयपुर ग्रामीण, जालौर-सिरोही, झुंझुनूं, करौली, धौलपुर, नागौर, सीकर, टोंक, सवाई माधोपुर, श्रीगंगानगर, अलवर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर तथा बाड़मेर ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं, जहां भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले हैं। इन संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस की ओर से जीत की रणनीति बनाई जा रही है, इसलिए कांग्रेस को अशोक गहलोत जैसे नेताओं का चुनाव लड़ने पर विचार करना पड़ रहा है। लेकिन गत दो बार के हालात को देखते हुए कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लडऩे को इच्छुक नहीं है। सब जानते हैं कि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते रघु शर्मा ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में घमासान मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तब रघु शर्मा का सितारा इतना बुलंद था कि उन्हें गुजरात का प्रभारी बना दिया गया। रघु ने गुजरात में भी घमासान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही वजह रही कि गुजरात में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 182 में से मात्र 17 सीटें हासिल हुई। चुनाव के बाद कांग्रेस के नेताओं ने ही रघु के कारनामों की पोल सोशल मीडिया पर खोली। सवाल उठता है कि जिन रघु शर्मा ने प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्री और फिर गुजरात का प्रभारी रहते हुए इतना घमासान मचाया क्या वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकते हैं? रघु को अजमेर और जयपुर से चुनाव लड़ने का अनुभव है।

प्रमोद जैन भाया:
गहलोत सरकार में खान मंत्री रहते हुए प्रमोद जैन भाया के घमासान की गूंज दिल्ली तक हुई, लेकिन सीएम गहलोत ने किसी की भी नहीं सुनी। कांग्रेस के ही एक विधायक ने जैन को गहलोत सरकार का भ्रष्टतम मंत्री कहा। जैन ने खान मंत्री रहते जो घमासान किया उसे देखते हुए अब उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़कर पार्टी की मदद करनी चाहिए।

प्रताप सिंह खाचरियावास:
गहलोत सरकार में पूरे पांच वर्ष सबसे ज्यादा मजे खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने लिए। खाचरियावास ने ऐसा प्रदर्शित किया जैसे वे ही असली मुख्यमंत्री है। कई बार खाचरियावास ने सीएम गहलोत को धमकाने वाले अंदाज में बयान दिए। आईएएस की सर्विस सीट भरने की मांग भी खाचरियावास ने की। गहलोत सरकार ने नंबर दो मंत्र जाने जाने वाले शांति धारीवाल को लताड़ने में भी खाचरियावास ने कोई कसर नहीं छोड़ी। खाचरियावास अपने दबंग व्यवहार के कारण न्यूज चैनलों पर छाए रहे। अब खाचरियावास को पहल कर चुनाव लड़ना चाहिए।

बृजेंद्र ओला:
सब जानते हैं कि बृजेंद्र ओला ने पहले मंत्री पद हथिया और फिर जिद कर परिवहन विभाग हासिल किया। सीएम गहलोत की मजबूरी थी कि खाचरियावास से परिवहन छीनकर बृजेंद्र ओला को दिया। जिन ओला ने जबरन परिवहन विभाग लिया उन्होंने इस विभाग में कितना घमासान किया, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

शांति धारीवाल:
अशोक गहलोत जब जब मुख्यमंत्री रहे, तब तब उन्होंने शांति धारीवाल को नगरीय विकास मंत्री बनाया। विधानसभा चुनाव के दौरान भ गहलोत ने कहा कि चौथी बार मुख्यमंत्री बनने पर वह धारीवाल को ही नगरीय विकास मंत्री बनाएंगे। धारीवाल वो ही दबंग नेता है जिन्होंने राजनीतिक संकट के समय कहा था कि हमारे लिए तो अशोक गहलोत की कांग्रेस हाईकमान है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नगरीय विकास मंत्री रहते हुए धारीवाल ने कितना घमासान किया होगा। लेकिन अब लोकसभा चुनाव लडऩे से धारीवाल पीछे हट रहे हैं।
वैभव गहलोत:
वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष इसलिए बन पाए कि उनके पिता अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे। वैभव गहलोत ने भी आरसीए में घमासान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब गहलोत भी लोकसभा चुनाव लडऩे से पीछे हट रहे हैं। वैभव गहलोत गत बार जोधपुर से चुनाव हार चुके हैं।

सुभाष गर्ग:
गहलोत सरकार में सुभाष गर्ग भले ही आरएलडी के विधायक और मंत्री हो, लेकिन सीएम गहलोत ने गर्ग को कांग्रेस के मंत्री से भी ज्यादा तवज्जो दी। दिल्ली में होने वाली जीएसटी की बैठक में सुभाष गर्ग ने ही राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। चूंकि गहलोत ने वित्त विभाग अपने पास रखा इसलिए वे सुभाष गर्ग को ही अपना प्रतिनिधित्व बना कर दिल्ली की बैठकों में भेजते रहे। रीट परीक्षा में गर्ग ने जो घमासान मचाया उसके कारण गहलोत सरकार की देश भर में बदनामी हुई। रीट परीक्षा की तैयारियों में तो गहलोत ने शिक्षा मंत्री डोटासरा से ज्यादा तवज्जो सुभाष गर्ग को दी।

गोविंद सिंह डोटासरा:
कांग्रेस शासन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शिक्षक दिवस पर शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा की उपस्थिति में शिक्षकों से संवाद किया था। तब गहलोत ने पूछा, तबादलों के लिए शिक्षकों से पैसे लिए जाते हैं? तो सभी शिक्षकों ने हाथ खड़ा कर पैसे लेने की बात स्वीकारी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डोटासरा के शिक्षा मंत्री रहते शिक्षा विभाग में कितना घमासान हुआ होगा। सब जानते हैं कि सचिन पायलट को हटाकर डोटासरा को ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। डोटासरा को आगे बढ़ाने में गहलोत ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आज डोटासरा जिन मुकाम पर खड़े हैं उसमें गहलोत की महत्वपूर्ण भूमिका है। मौजूदा समय में भी डोटासरा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष है। यदि डोटासरा अपने गृह जिले सीकर से लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं नई ऊर्जा होगी।

धर्मेन्द्र राठौड़:
कांग्रेस के शासन में आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ की भी खूब चर्चा रही। 25 सितंबर 2022 को गहलोत के समर्थन में विधायकों को एकत्रित करने में राठौड़ की महत्वपूर्ण भूमिका थी। राठौड़ ने कांग्रेस की राजनीति में जो मुकाम हासिल किया उसके कारण अब उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहिए।

तो राज्य सभा में एक सीट कम हो जाएगी:
8 मार्च को कांग्रेस ने जिन उम्मीदवारों की घोषणा की है, उसमें केरल की अउझा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल को उम्मीदवार बनाया गया है। मालूम हो कि वेणुगोपाल मौजूदा समय में राजस्थान से राज्यसभा के सांसद हैं। वेणुगोपाल का कार्यकाल जून 2026 तक हैं। अब यदि वेणुगोपाल केरल से लोकसभा के सदस्य चुन लिए जाते हैं तो राजस्थान से एक सीट खाली हो जाएगी। राजस्थान में उपचुनाव होने पर इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार की जीत होगी। क्योंकि भाजपा के 115 विधायक हैं। ऐसे में राज्यसभा में कांग्रेस की एक सीट कम हो ज जाएगी।