नई दिल्ली,14फरवरी। हिंदू परंपराओं में वर्ष को छह ऋतुओं में बांटा गया है, जिसमें बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु और शिशिर ऋतु शामिल हैं. इनमें से बसंत ऋतु को ‘ऋतुराज’ या ऋतुओं का राजा माना जाता है. इसी ऋतु के आगमन का प्रतीक है बसंत पंचमी, जिसे ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती को समर्पित पर्व के रूप में मनाया जाता है.
क्यों मनाई जाती है बसंत पंचमी ?
इस ऋतु में फसलें लहलहा उठती हैं, खेतों में फूल खिलते हैं और हर जगह हरियाली के रूप में खुशहाली नजर आती है. इस दिन से शीत ऋतु का समापन होता है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन ज्ञान की देवी माँ सरस्वती प्रकट हुई थी, इसलिए बसंत पंचमी के दिन सभी जगह विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. इस दिन पीले फूलों से देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. पीले रंग को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इस दिन लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं. लोग पतंग उड़ाते हैं. इस ऋतु के साथ मौसम की चाल बदलने लगती है.
कैसे हुई बसंत पंचमी को मनाने की शुरुआत?
बसंत पंचमी को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्यों की रचना की थी, तब उन्हें चारो ओर सुनसान ही दिखाई दे रहा था. वातावरण बहुत ही शांत था, तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का. जल छिड़कने के बाद देवी सरस्वती हाथ में वीणा लिए प्रकट हुईं. उस दिन से बसंत पंचमी को पूरे देश में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है.