Online News Portal for Daily Hindi News and Updates with weekly E-paper

आचार्य लोकेश मुनि ने साझा किए भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी जी के साथ अविस्मरणीय प्रसंग*

71
Tour And Travels

नई दिल्ली,05 फरवरी।जैन संत और अहिंसा बिश्व भारती के संस्थापक आचार्य लोकेश मुनि, ने लालकृष्ण आडवाणी जी के साथ अविस्मरणीय प्रसंग* साझा करते हुए लिखा; महामहिम राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने “अनेकान्त है तीसरा नेत्र” ग्रंथ का लोकार्पण समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित करने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी।

माननीय उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी जी से समारोह की अध्यक्षता करने का मैंने आग्रह करते हुए कहा कि यह पुस्तक कल ही छपकर आई है। मेरे साथ सुश्रावक मांगीलाल जी सेठिया एवं कन्हैयालाल जी पटावरी थे।आडवाणी जी बोले “यह पुस्तक तो मैंने पहले पढ़ रखी है, मैंने कहा नहीं, वो “सत्य की खोज होगा” यह तो प्रेस से कल ही छपकर आई है।

आडवाणी जी अपने स्थान से उठ खड़े हुए और कक्ष में पुस्तकों की अलमारी की ओर बढ़े, मेरे साथ वालों की सांसे थम सी गई, चेहरा सफ़ेद, काँटों तो खून नहीं जैसी स्थिति हो गई। वे मेरी ओर देख रहे थे शायद यह सोचते हुए कि मुनिजी ने यह क्या कर दिया।

आडवाणी जी ने अलमारी से पुस्तक निकाली और वो पुस्तक सत्य की खोज ही थी सभी ने राहत की साँस ली और आडवाणी जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित हो रहे अनेकान्त है तीसरा नेत्र ग्रंथ के लोकार्पण समारोह में भाग लेने की सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी।


दोनों पुस्तकों का बाह्य आवरण एक जैसा था पर गौर करने की बात यह है कि माननीय आडवाणी जी अत्यंत व्यस्तता के बीच केवल पुस्तक ही गहराई से नहीं पढ़ते थे, बल्कि उसका आवरण भी उनके स्मृति पटल पर अंकित हो जाता था।
ऐसे है माननीय आडवाणी जी मेरे शिक्षा गुरू पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के साहित्य के प्रेमी पाठक।
ऐसे विद्वान राजनीतिज्ञों की आज ज़रूरत है।