नई दिल्ली,18 जनवरी। मायावती ने यह एलान कर दिया है की आगामी चुनाव मे बसपा बिना किसी से गठबंधन किए लोकसभा चुनाव मे उतरेगी। मायावती की ‘एकला चलो’ पॉलिटिक्स से सपा-कॉंग्रेस गठबंधन ओर बीजेपी में से किसको फायदा हो सकता है ओर किसे नुकसान?
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर मायावती ने यह भी कहा है कि चुनाव के बाद हम विचार करेंगे कि कौन सी सरकार सही है, और फिर उसके बाद जो सही लगेगा उसी के साथ जाने पर निर्णय लिया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को 2024 के चुनावी अखाड़े में पटखनी देने के लिए विपक्षी पार्टियां एक सीट पर एक उम्मीदवार उतारने के फॉर्मूले पर काम कर रही हैं. यूपी में बीजेपी सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित कर चुनावी तैयारियों में जुट गई है तो वहीं विपक्ष का एक सीट, एक उम्मीदवार का फॉर्मूला सूबे में फेल हो गया है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने यह ऐलान कर दिया है कि हम किसी से गठबंधन किए बगैर चुनाव मैदान में उतरेंगे।
मायावती ने चुनाव बाद गठबंधन का विकल्प खुला रखा है लेकिन साथ ही यह भी साफ कहा है कि बसपा किसी को भी फ्री में समर्थन नहीं देगी. मायावती के इस ऐलान के साथ ही यह साफ हो गया है कि यूपी में लड़ाई त्रिकोणीय होगी. अब चर्चा इसे लेकर भी होने लगी है कि मायावती के ‘एकला चलो’ की पॉलिटिक्स से कांग्रेस, सपा और बीजेपी में किसे नफा हो सकता है और किसे नुकसान?
क्या कहते हैं जानकार
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी का कहना है कि बसपा के अकेले चुनाव मैदान में उतरने से सपा-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान का खतरा अधिक है. अगर यह मान लें कि बीजेपी का वोट शेयर पिछले चुनाव के मुकाबले बड़ी गिरावट के साथ बीजेपी का वोट शेयर 42 या 44 फीसदी के स्तर तक भी आ जाता है तो बाकी का वोट सपा-कांग्रेस और बसपा के बीच बंटेगा. बसपा के पास करीब 19 फीसदी वोट बैंक है जो पार्टी के ही साथ जाता है. मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण सेट करने में सफल रहीं तो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अनुकूल माहौल और एंटी वोट का सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा के बीच बंटवारा बीजेपी की राह आसान कर सकते हैं
अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा दे रहे हैं. घोसी उपचुनाव में सपा की जीत से भी विपक्षी खेमा उत्साहित है लेकिन एक फैक्टर यह भी है कि घोसी में बीजेपी और सपा के बीच सीधा मुकाबला था. बसपा ने उम्मीदवार नहीं उतारा था. लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन के सामने ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा देकर चुनाव मैदान में उतर रही बीजेपी के साथ ही बसपा से पार पाने की चुनौती भी होगी. कहा यह भी जा रहा है कि मुकाबला अगर एकजुट विपक्ष से होता तो बीजेपी के लिए चुनावी राह अधिक मुश्किल हो सकती थी लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले का नुकसान विपक्ष को उठाना पड़ सकता है।
कैसे रहे 2014 और 2019 के परिणाम
दलित, खासकर जाटव बसपा के बेस वोटर माने जाते हैं. दलित वर्ग की आबादी यूपी में करीब 21 फीसदी है. बसपा का वोट शेयर देखें तो पार्टी 2014 के चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी, तब भी पार्टी को 19.8 फीसदी वोट मिले थे. तब बीजेपी ने 42.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 71 सीटें जीती थीं. सपा को 22.3 फीसदी वोट शेयर के साथ पांच और 7.5 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस दो सीटें जीत सकी थी. बीजेपी की गठबंधन सहयोगी अपना दल (एस) को एक फीसदी वोट शेयर के साथ पांच और 7.5 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस दो सीटें जीत सकी थी. बीजेपी की गठबंधन सहयोगी अपना दल (एस) को एक फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटों पर जीत मिली थी. 2019 के चुनाव मे बसपा ने सपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा. तब मायावती की पार्टी वोट शेयर और सीटों के लिहाज से बीजेपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
बसपा को तब 19.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 10 सीटों पर जीत मिली थी. सपा 18.1 फीसदी वोट शेयर के साथ पांच और कांग्रेस 6.4 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट जीत सकी थी. अपना दल (एस) को 1.2 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटों पर जीत मिली थी. सूबे में 2014 चुनाव के मुकाबले बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा था, हालांकि उसे नौ सीट का नुकसान उठाना प़ड़ा था. बसपा का वोट सहयोगी पार्टियों को एकमुश्त ट्रांसफर होता है, मायावती ने भी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए इस बात पर खासा जोर दिया था।
गठबंधन में बसपा की एंट्री चाहती थी कांग्रेस
कांग्रेस के नेता विपक्षी एकजुटता की कवायद की शुरुआत से ही बसपा को भी गठबंधन में शामिल करने की हिमायत कर रहे थे. हालांकि, सपा प्रमुख अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन में बसपा की एंट्री के खिलाफ थे. अखिलेश ने इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई चौथी बैठक में दो टूक कह दिया था कि अगर बसपा की एंट्री होती है तो सपा को भी अपना स्टैंड क्लियर करना पड़ेगा. अखिलेश ने तो इंडिया गठबंधन से एग्जिट तक की चेतावनी दे दी थी. मायावती ने बसपा के अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करते समय भी अखिलेश पर निशाना साधते हुए उनकी तुलना गिरगिट से कर दी थी।