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सत्ताधारियों द्वारा अफसरों से वफादारी निभाने की अपेक्षा और दुरुपयोग

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कर्नाटक में पिछले दिनों देश के 26 राजनैतिक दलों के नेताओं की बैठक के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार ने करीब तीस आई ए एस अधिकारियों की ड्यूटी लगा दी। हर नेता की सेवा में दो दिनों के लिए एक एक अफसर । सत्ता और अधिकारियों के इस दुरुपयोग पर विधान सभा में भारी हंगामा हुआ है। यों सरकारों के पास खास मेहमानों के आतिथ्य का अधिकार है। किसी अन्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के आने पर नियमों के अनुसार आवास, वाहन और एक सहयोगी, पुलिस सुरक्षा का अधिकार है। बेंगलूर की बैठक में बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली, तमिलनाडु आदि राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए सामान्य नियमानुसार स्वागत सत्कार की व्यवस्था हो सकती थी। लेकिन केवल राजनीतिक बैठक के लिए सभी नेताओं को ऐसी ही सुविधा और सबके लिए वरिष्ठ अधिकारियों की तैनाती सत्ता का दुरुपयोग ही माना जाएगा। असल में कांग्रेस के नेताओं को सत्ता में प्रतिबद्ध प्रशासनिक व्यवस्था की आदत रही है। बाद में अन्य दलों के नेताओं को यह रोग लगने लगा। इससे सत्ता के साथ ट्रांसफर पोस्टिंग का रोग और भ्रष्टाचार भी बढ़ता गया। हाल के वर्षों में कुछ राज्यों में केंद्रीय जांच एजेंसियों के छापों में अधिकारियों और उनके परिजनों के ठिकानों से करोड़ों रुपयों के भंडार बरामद हुए हैं।

राज्यों में नेताओं अधिकारियों और अपराधियों के गठजोड़ पर वर्षों पहले एक रिपोर्ट आई थी। लेकिन उसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। दशकों से सभाओं और आंदोलनों में नारा सुनते रहे हैं अफसरशाही नहीं चलेगी । जनता भी दफ्तरों में बाबुओं अफसरों के रुख से नाराज होते हैं, विभिन्न राजनैतिक दलों के पार्षदों, विधायकों और सांसदों को भी कई अफसरों से शिकायत रहती है। लेकिन धीरे धीरे अच्छा या उनकी पसंद और विचारधारा से काम करने वाले अफसर को पार्टियां सत्ता की राजनीति में शामिल करने लगी और मतदाता भी उन्हें चुनने लगी। सबसे बड़ा उदाहरण अरविन्द केजरीवाल का है। वह न केवल राजनीति में आए स्वयं पार्टी बनाई, छोटा और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के दो बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन केवल दस वर्षों में पार्टी का विस्तार करके अब पंजाब में आम आदमी पार्टी और अपने पसंदीदा भगवंत मान को मुख्यमंत्री भी बनवा दिया। इसे दिल्ली से बड़ी सफलता कहा जाएगा। अरविन्द केजरीवाल के समर्थक और कुछ मीडियाकर्मी उनको आने वाले वर्षों में वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी या योगी आदित्यनाथ के भावी विपक्ष के नेता के रूप में भी पेश करने लगे हैं। दूसरी तरफ उनके सत्ता काल के गंभीर घोटालों से दो मंत्री और अधिकारी तथा उनके साथी जेल में हैं।

इन दिनों छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार में भी नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों के घोटालों और छापेमारी में अकूत धन संपत्ति बरामद हो रही है। यों इसके पूर्व अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में भी भ्रष्टाचार के प्रकरण सामने आए थे। वह भी कांग्रेस की कृपा से अफसरी के बाद सांसद और मुख्यमंत्री बने थे। आंध्र, तमिलनाडु • तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में नेताओं की वफ़ादारी वाले अफसरों की कहानियां हर जिले में मिल सकती है। ईमानदार अधिकारी यह दर्द भी बताते हैं कि मोटी रकम न देने पर उन्हें दूर दराज के इलाकों में तैनात कर दिया जाता है। कांग्रेस के नेता इन दिनों बीमार हों या अच्छी सार्वजनिक क्षेत्र यानी पब्लिक सेक्टर कंपनियों को चलाने पर बहुत जोर देते हैं। एक अनुभवी वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पब्लिक सेक्टर की कुछ कंपनियों के अध्यक्ष पद की नियुक्ति के लिए योग्य अभ्यार्थी से भी 25 से 50 करोड़ रूपये तक का रेट नेताओं के एजेंट मांगते हैं। दक्षिण के एक नेता तो प्रधान मंत्री तक बन गए, लेकिन आधी रात को बैठकर अपने राज्यों के अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग की चिंता करते रहते थे। ईमानदार अधिकारी इस प्रवृत्ति से परेशान रहे हैं। वे न वसूली करके ले पाते हैं और न ही नेता की सेवा कर पाते हैं। हाँ एक समय वैचारिक प्रतिबद्धता का असर सत्ता व्यवस्था में रहा। खासकर कम्युनिस्ट विचार वाले अधिकारियों और नेताओं के वर्चस्व का। लेकिन पश्चिम बंगाल में देर सबेर उन्हें भी भ्रष्टाचार का रोग लग गया।

दूसरी तरफ तेजी से प्रगति कर रहे ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक देश के सर्वाधिक सफल माने जाते हैं। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं हैं। वह अपने विश्वसनीय सचिव को महत्वपूर्ण भूमिका दे रहे हैं। हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब पटनायक से मिलने आए तो भोजन के समय यह सचिव भी साथ की कुर्सी पर बैठे। यह असामान्य सी घटना मानी जाती है। ओडिसा के जिलों का दौरा करने और उससे ज्यादा हलचल पैदा करने वाला कोई भी वीआईपी कोई मंत्री नहीं है। वह 2000 आईएएस बैच के वी. कार्तिकयन पांडियन है। वह कोई सामान्य अधिकारी नहीं है, इस बात पर कभी संदेह नहीं रहा। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के निजी सचिव के रूप में उन्हें हमेशा बेहद शक्तिशाली देखा गया है। लगभग हमेशा पूरी बांह की शर्ट पहने रहते हैं, जिसे वह कभी भी अपने ट्रेडमार्क तंग पतलून के ऊपर नहीं रखते हैं। सार्वजनिक रूप से हमेशा पटनायक के साथ देखे जाने के कारण, वह मुख्यमंत्री तक पहुँच को नियंत्रित करते हैं। अधिकांश मंत्री और विधायक अगर पटनायक से मिलना चाहते हैं तो उनके सामने कतार में खड़े रहते हैं। हाल ही में जिलों के दोरे से पांडियन का कद और बढ़ गया है। लंबे समय तक मीडिया की चकाचौंध में रहने वाले, ज्यादातर पटनायक के साथ अपनी निकटता के कारण, अब वह सुर्खियों में हैं। पांडियन से मिलना, अभिवादन करना, याचिकाएं प्राप्त करना और लोगों को संबोधित करना चर्चा में है। ढेंकनाल, क्योंझर और कंधमाल सहित योजनाओं को आधिकारिक तौर पर परिवर्तनकारी कार्य योजनाओं में तेजी लाने के प्रयासों के रूप में देखा जाता है: एक शक्तिशाली नदी पर पुल के निर्माण से लेकर एक बड़े मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की स्थापना तक पटनायक की बीजू जनता दल (बीजेडी) के नेताओं के मुताबिक, पांडियन केवल मुख्यमंत्री के लक्ष्यों को पूरा कर रहे हैं।

इस तरह के अधिकारी प्रशासनिक सेवाओं में कुछ आशा और विश्वास का संचार करते हैं। लेकिन नेताओं के साथ भ्रष्टाचार के दलदल में शामिल हुए बिना तरक्की न होने की खबरों से कई ईमानदार प्रतिभाशाली और उच्च शिक्षा प्राप्त युवा अब प्रशासनिक सेवा के बजाय देशी विदेशी कंपनियों में नौकरियां तलाशने लगे हैं। आज़ादी के 75 साल बाद सत्ता व्यवस्था के पुराने रोग ख़त्म कर नई उम्मीदें जगाने की आवश्यकता है। पटवारी, बाबु, सिपाही आदि की सरकारी नौकरियों के प्रति मोह जगाने का काम भी कई नेता करते हैं और फिर उनकी भर्ती नियुक्ति तबादले आदि में भी भ्रष्टाचार होने लगता है। लोक सेवक का मतलब नेता का सेवक नहीं होना चाहिए। दुनिया के किसी भी लोकतान्त्रिक देश में सरकारी नोकरियों के लिए राजनीतिक दल अभियान नहीं चलाते । नई अर्थ व्यवस्था और डिजिटल युग में आवश्यक सेवाओं में ही सरकारी नौकरियाँ होनी चाहिए। अन्यथा आत्म निर्भर भारत का सपना कैसे साकार होगा ?