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राष्ट्रभाषा की प्रधानता को समझना बहुत आवश्यक है – डॉ. मनसुख मांडविया

डॉ. मनसुख मांडविया ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति की बैठक को संबोधित किया

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नई दिल्ली, 3जुलाई। हिंदी का प्रसार-प्रचार और बढ़ता हुआ प्रयोग हमें हमारी व्यापक विविधता के बावजूद एक आम राष्ट्रीय स्वर के साथ संवाद स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने यह बात आज हिंदी सलाहकार समिति की बैठक में अपने संबोधन के दौरान कही। इस अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल और डॉ. भारती प्रवीण पवार भी उपस्थित थे।

हिंदी सलाहकार समिति केंद्र सरकार के प्रत्येक मंत्रालय में हिंदी में सरकारी कामकाज को बढ़ावा देने के लिए गठित एक समिति है, इसकी वर्ष में कम से कम दो बैठकें आयोजित करने का प्रावधान है।

डॉ. मांडविया ने कहा कि राष्ट्रभाषा की प्रधानता को समझना बहुत आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि यह हमारी अभिव्यक्ति के लिए एक मंच प्रदान करता है और राष्ट्रीय एकता और इकाई के लिए एक समन्वय प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि हम अपनी क्षेत्रीय भाषाओं का भी उपयोग कर सकते हैं लेकिन हमें राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का सम्मान करना चाहिए। आइए हम सभी हिंदी का एक ऐसी भाषा के रूप में प्रयोग करें जो हमारे राष्ट्रीय चरित्र को स्वरूप प्रदान देने में हमारी सहायता करती है।

डॉ. मनसुख मांडविया ने सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय स्तर पर की जा रही विभिन्न गतिविधियों के बारे में भी प्रकाश डाला।
मांडविया ने मंत्रालयों को अपने सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार और वार्षिक कार्यक्रम में उल्लेखित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सौंपी गई जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। यह मंत्रालय हिंदी को हमारी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता के प्रतीक के रूप में मान्यता देता है, जो हमारे सामूहिक राष्ट्रवाद को दर्शाती हैं।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार ने कहा कि हिंदी भाषा मधुर भी है और आसान भी है। इसके प्रचार-प्रसार को न केवल इसलिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि यह हमारी परंपरा और विरासत का हिस्सा है, बल्कि यह लोगों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने के लिए भी जरूरी है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रोफेसर एसपी बघेल ने भी सभी लोगों से सरकारी कामकाज में हिंदी के उपयोग को उत्तरोत्तर बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने अधिकारियों के मध्य हिंदी के प्रयोग के प्रति बेहतर जागरूकता और प्रचार-प्रसार करने पर जोर दिया।

बैठक में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों द्वारा मंत्रालय की विभिन्न गतिविधियों में हिंदी के उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कई सुझाव और इनपुट भी दिए गए। उन्होंने विशेष रूप से हिंदी भाषी क्षेत्र में चिकित्सा की सभी शाखाओं – एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद की दवाओं के नामकरण हिंदी में करने का सुझाव दिया। उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि डॉक्टरों को हिंदी में दवाइयों का नाम लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इससे लोगों को दवाइयों का नाम समझने में मदद मिलेगी और हिंदी के प्रयोग को भी बढ़ावा मिलेगा। यह भी कहा गया कि सरकारी प्रयोजनों के लिए हिंदी का प्रयोग बढ़ाया जाना चाहिए ताकि लोगों को हिंदी में बात करने में गर्व महसूस हो और इस धारणा को दूर किया जा सके कि केवल अंग्रेजी ही आधुनिक भाषा है। उन्होंने इस आवश्यकता पर भी जोर दिया कि मंत्रालयों में सभी प्रशासनिक कार्य हिंदी में किए जाएं। अन्य सदस्यों ने यह सुझाव दिया कि पूरे भारत में ऐसी बैठकें आयोजित की जाएं जिससे लोगों को गर्व की भावना के साथ हिंदी में बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

इस बैठक में डॉ. अनिल अग्रवाल, संसद सदस्य (राज्यसभा), श्री गुलाम अली, संसद सदस्य (राज्यसभा), श्री प्रतापराव जाधव, संसद सदस्य (लोकसभा) उपस्थित थे। बैठक में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल; श्री सुधांश पंत, विशेष कार्य अधिकारी, स्वास्थ्य मंत्रालय; श्रीमती रोली सिंह, एएस एवं एमडी (एनएचएम), स्वास्थ्य मंत्रालय; श्री जयदीप कुमार मिश्रा, एएस एवं एफए, स्वास्थ्य मंत्रालय; श्री राजीव मांझी, संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय; स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल; डॉ. एम श्रीनिवास, निदेशक, एम्स (नई दिल्ली) और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।