नई दिल्ली, 25मई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 24 मई बुधवार को रांची में झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन का उद्घाटन एक ऐतिहासिक घटना है। यह इमारत अपनी आधुनिक सुविधाओं और अत्याधुनिक भौतिक अवसंरचना के साथ वास्तव में प्रभावशाली है। उन्होंने कहा कि ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए पूरे परिसर को डिजाइन और निर्मित किया गया है। विभिन्न प्रकार के पेड़ों के साथ वनीकरण इसे वास्तव में एक हरा-भरा परिसर बनाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि झारखंड उच्च न्यायालय का नया भवन अन्य सार्वजनिक और निजी संगठनों को समान प्रकृति की अपनी परियोजनाओं में पर्यावरण को केंद्रीय मानक बनाने के लिए प्रेरित करेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि अदालत न्याय का मंदिर होता है। इस देश के लोग न्यायालयों को आस्था की नजर से देखते हैं और कानून की भाषा भी इसी भावना को दर्शाती है, जब हम ‘प्रार्थना’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। लोगों ने खुद ही अदालतों को न्याय देने और गलत को ठीक करने की शक्ति दी है। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में एक बहुत ही गंभीर जिम्मेदारी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय तक पहुंच के सवाल के कई पहलू हैं। पैसों का खर्च इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है। यह देखा गया है कि मुकदमेबाजी का खर्च अक्सर न्याय पाने के प्रयास को कई नागरिकों की पहुंच से बाहर कर देता है। इसके जवाब में, विभिन्न प्राधिकरणों ने नि:शुल्क कानूनी परामर्श प्रकोष्ठ खोलने सहित कई स्वागत योग्य पहलें की हैं। उन्होंने सभी हितधारकों से अभिनव तरीके से सोचने और न्याय की पहुंच का विस्तार करने के लिए नए उपाय ढूंढने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि पहुंच का एक अन्य पहलू भाषा है। चूँकि, अंग्रेजी भारत में अदालतों की प्राथमिक भाषा रही है, आबादी का एक बड़ा वर्ग इस प्रक्रिया से बाहर रह गया है। न्याय की भाषा समावेशी होनी चाहिए, ताकि किसी मामले के पक्षकार और अन्य इच्छुक नागरिक व्यवस्था के प्रभावी हितधारक बन सकें। उन्होंने कहा कि समृद्ध भाषाई विविधता वाले झारखंड जैसे राज्य में यह कारक और भी प्रासंगिक हो जाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अधिकारी, अदालती प्रक्रियाओं को उन लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं, जो अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में अधिक सहज हैं।
राष्ट्रपति ने विचाराधीन कैदियों को न्याय सुलभ कराने की आवश्यकता को दोहराया। उन्होंने कहा कि समस्या के पीछे एक कारण यह है कि अदालतों पर अत्यधिक बोझ है, जो न्याय तक पहुंच को भी नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि समस्या जटिल है, फिर भी तथ्य यह है कि बड़ी संख्या में लोगों को वर्षों तक विचाराधीन कैदियों के रूप में जेलों में रहना पड़ता है। जेलें खचाखच भरी हुई हैं, जिससे उनका जीवन और भी कठिन हो जाता है। उन्होंने कहा कि समस्या के मूल कारण का समाधान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह देखना अच्छा है कि इस समस्या पर व्यापक रूप से ध्यान दिया गया है, इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है और कानूनी क्षेत्र के कुछ बेहतरीन लोग इस मामले पर विचार कर रहे हैं। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ और समावेशी बनाने के लिए, विशेष रूप से भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं के लिए, कई कदम उठाए गए हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि हम सब मिलकर जल्द ही इसका समाधान निकाल लेंगे।
राष्ट्रपति ने अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों को रेखांकित करते हुए अपने संबोधन का समापन किया। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, न्यायाधीशों, वकीलों और अन्य हितधारकों से उन मामलों से निपटने के लिए एक प्रणाली तैयार करने का आग्रह किया, जहां फैसले लागू नहीं हो पाते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि जिन लोगों ने वर्षों से मुक़दमे लड़ने में अपना समय, ऊर्जा और पैसा खर्च किया है, उन्हें सही मायने में न्याय मिलना चाहिए।
इससे पहले, राष्ट्रपति ने रांची में भगवान बिरसा मुंडा और लांस नायक अल्बर्ट एक्का की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने राजभवन, रांची में झारखंड के पीवीटीजी के सदस्यों के साथ बातचीत भी की।