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मानहानि केस में मनोज तिवारी को राहत, दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई पर लगाई रोक

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नई दिल्ली,10मई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा दायर मानहानि के मामले में भाजपा सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी। तिवारी और पांच अन्य लोगों ने दावा किया था कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में नई कक्षाओं के निर्माण से संबंधित लगभग 2,000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार में सिसोदिया भी शामिल हैं। इसके बाद सिसोदिया ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने इस मामले में भाजपा सांसद के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाने का आदेश दिया और तिवारी की याचिका पर नोटिस जारी किया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 नवंबर की तारीख तय की है। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा: नोटिस जारी करें। इस बीच, याचिकाकर्ता की कार्यवाही स्थगित रहेगी।

सिसोदिया ने तिवारी, मनजिंदर सिंह सिरसा, हंस राज हंस, विजेंद्र गुप्ता, हरीश खुराना और प्रवेश वर्मा के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था।

उच्च न्यायालय ने 20 जनवरी को इसी मामले में भाजपा प्रवक्ता और मीडिया प्रभारी खुराना के खिलाफ निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। खुराना ने स्टे की मांग को लेकर कोर्ट का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने पांच जनवरी को भाजपा नेता सिरसा और हंस के खिलाफ निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

बुधवार को सुनवाई के दौरान तिवारी के वकील ने कहा कि मानहानि के मामले में तिवारी द्वारा दायर एसएलपी पर फैसला करते समय अदालत ने केवल आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत मंजूरी देने के सवाल पर विचार किया और कुछ तथ्यों को देखते हुए याचिका सुनवाई योग्य थी।

अदालत को आगे बताया गया कि छह आरोपियों में से गुप्ता के खिलाफ चल रही कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था और तिवारी को छोड़कर चार अन्य के खिलाफ रोक लगा दी थी। अन्य आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही पर पहले ही रोक लगाई जा चुकी है और ऐसे में तिवारी के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने से फायदा नहीं होगा। सिसोदिया के वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि याचिका अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

उन्होंने कहा कि इस मामले में बाद में कोई तथ्य सामने नहीं आया और सुप्रीम कोर्ट ने तिवारी की याचिका को खारिज कर दिया था और उनके खिलाफ कार्यवाही रोकना सिसोदिया के लिए प्रतिकूल होगा जिन्होंने इस मामले में पिछले पांच वर्षों से कोई प्रगति नहीं देखी है।