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श्री राम की नैतिकता की रावण द्वारा सराहना!

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*सरोज कुमारी।
जब रावण ने श्रीराम की नैतिकता की सराहना की. इसके बारे में इस कथा को पढ़े तो आपको प्रतीत होगा कि नैतिकता के क्या मायने है —-
कथा -:
लक्ष्मण जी पहली बार मेघनाथ से युद्ध करने के लिए गए,। मेघनाथ को मार नहीं पाए। और मूर्छित हो गए। कारण, पहली बार गए तो आज्ञा लेकर गए, प्रणाम का वर्णन नहीं है, प्रणाम नहीं किया। और क्रोधित हो कर गए। और जब दूसरी बार गए तो राम जी को प्रणाम करके गए। इसका आसय क्या?
इसका आशय यह है कि, काम को जोश से समाप्त नहीं किया जा सकता।, बल्कि, काम यदि समाप्त होगा तो बोध से होगा। भगवान की कृपा से होगा। वही लक्ष्मण जी थे, और वही मेघनाथ था। लक्ष्मण जी ने, रामजी की कृपा से मेघनाथ को समाप्त कर दिया। मेघनाथ की भुजा कटकर, उसके महल में मेघनाथ की पत्नी सुलोचना के समक्ष जाकर गिरी। मेघनाथ की पत्नी सुलोचना भी एक महान शति थी। अपने पति की भुजा देखकर वह पहचान गई। रुदन विलाप करने लगी। सती सुलोचना ने कहा कि यदि मेरे सतीत्व में सत है तो, मेरे पति की इस भुजा पर मारने वाले का नाम अंकित हो जाए। सुलोचना ने जैसे ही कहा,। मेघनाथ की भुजा पर लिखा हुआ आ गया कि, इनका वध राम जी के छोटे भाई लक्ष्मण जी ने किया है। सुलोचना विलाप करते हुए रावण के पास गई। जाकर कहा कि पिताजी, मेरे पति का वध हुआ है। उनकी भुजा कटकर मेरे महल में आई है। यह समाचार सुनकर रावण अत्यधिक व्याकुल हुआ। मेघनाथ बड़ा शक्तिशाली है यह रावण को विश्वास था। सुलोचना ने रावण से कहा कि पिता जी आपकी आज्ञा हो तो, मैं युद्ध भूमि से अपने पति का शव लेकर आऊं। रावण ने सुलोचना को आज्ञा दे दी। सुलोचना अपने पति का शव लेने के लिए रणभूमि में आई। उधर रावण के दूत और मंत्रियों ने रावण से कहा, आपकी बुद्धि को क्या हो गया है महाराज?। आपके 10 मस्तिष्क हैं, इसके पश्चात भी आपने यह विचार नहीं किया कि, अपनी पुत्रवधू को दुश्मन के खेमे में, पति का शव लेने भेज दिया। अब ऐसा भी हो सकता है कि राम जी, सुलोचना को वही कैद कर ले। और आप से कहे कि , तुमने सीता जी को कैद कर रखा है, हमने सुलोचना को कैद कर लिया है। तुम सीता जी को स्वतंत्र कर दो हम सुलोचना को स्वतंत्र कर देंगे। रावण ने बड़े गंभीर होते हुए अपने सलाहकारों को उत्तर दिया। नहीं ऐसा नहीं हो सकता है। राम ऐसा कभी नहीं कर सकते हैं। जिनकी सेना में ब्रह्मचारी हनुमानजी हो, परमवीर अंगद हो, लक्ष्मण जी जैसा भाई हो। वह राम ऐसा नहीं करेगा। यह काम तो रावण का है। सुलोचना अपने पति का सव लेने के लिए, रणभूमि में पहुंची। और जाकर कहा की, मेरे पति का वध लक्ष्मण जी ने किया है। लक्ष्मण जी ने क्या ,उनकी पत्नी उर्मिला जी ने किया है। यह युद्ध, मेघनाथ और लक्ष्मण के बीच नहीं हो रहा था। यह युद्ध तो लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला जी, और मेरे बीच हो रहा था। किंतु इस युद्ध में आज उर्मिला जी की विजय हुई है।
उसका भी कारण मैं जानती हूं। सुलोचना लक्ष्मण जी से कहती है।
भूल यदि नहीं होती,
मेरे प्राणनाथ से,
रहे संग पापात्मा पिता के
मेरे।
बंधु धर्मात्मा के,
आप रहे पास में। सुलोचना की बातों से, लक्ष्मण जी बड़े प्रभावित हुए,। सुलोचना से कहा गया कि यदि तुम इतनी सती हो। जब तुम्हारे पति की भुजा पर यह लिखा हुआ आ गया कि इनका लक्ष्मण जी ने वध किया है। तो तुम्हारे पति का कटा हुआ शीश भी हंस देगा। तब उसी समय मेघनाथ का कटा हुआ सिर जोर जोर से हंसने लगा। सुलोचना अपने पति का शव ले जाकर सती हुई।
जय श्री राम !