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जैव-ईंधन उत्पादन से देश का ईंधन आयात बोझ कम होगा- गिरिराज सिंह

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नई दिल्ली, 9दिसंबर। केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने आज नई दिल्ली में ‘कैक्टस रोपण और इसके आर्थिक उपयोग’ विषय पर एक परामर्श बैठक आयोजित की। चिली के राजदूत श्री जुआन अंगुलो एम; मोरक्को दूतावास के मिशन उप प्रमुख श्री एराचिद अलौई मरानी; ब्राजील दूतावास के ऊर्जा प्रभाग की प्रमुख श्रीमती कैरोलिना सैटो; ब्राजील दूतावास के कृषि सहायक श्री एंजेलो मौरिसियो भी बैठक में शामिल हुए। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इन देशों के भारतीय राजदूतों ने भी बैठक में भाग लिया।

बैठक में चिली, मैक्सिको, ब्राजील, मोरक्को, ट्यूनीशिया, इटली, दक्षिण अफ्रीका और भारत जैसे विभिन्न देशों के चौदह विशेषज्ञों ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भाग लिया। भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर), विदेश मंत्रालय, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव, और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और शुष्क क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र (आईसीएआरडीए) के प्रतिनिधि और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा निम्न स्तर के भूमि की श्रेणी में है। डीओएलआर को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के वाटरशेड विकास घटक (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) के माध्यम से कम उर्वर भूमि में सुधार करने के लिए अधिकृत किया गया है। विभिन्न प्रकार के वृक्षारोपण उन गतिविधियों में से एक है जो कम उर्वर भूमि को सुधार करने में सहायता करते हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि देश के व्यापक लाभ के लिए जैव-ईंधन, भोजन, चारा और जैव-उर्वरक उत्पादन के लिए कैक्टस के उपयोग के लाभों को साकार करने के लिए कम उर्वर भूमि पर कैक्टस के रोपण के लिए विभिन्न विकल्पों का पता लगाया जाना चाहिए। मंत्री महोदय ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जैव-ईंधन उत्पादन से इन क्षेत्रों के गरीब किसानों के लिए रोजगार और आय सृजन में योगदान के अलावा देश का ईंधन आयात का बोझ भी कम होगा।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और शुष्क भूमि क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीएआरडीए) को मध्य प्रदेश में आईसीएआरडीए के अमलाहा फार्म में एक पायलट परियोजना स्थापित करने के कार्य में शामिल किया जा रहा है। इस उद्यम में आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय से अनुरोध किया गया है।

कैक्टस एक जेरोफाइटिक पौधा है जो वैसे तो अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ता है, लेकिन इसमें अपार संभावनाएं हैं , जैसा कि ऊपर बताया गया है। इसके अलावा, यह देश के लिए ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी)’ और ‘सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी)’ को प्राप्त करने में भी काफी मदद करेगा। विभाग का मानना है कि कैक्टस के पौधे परती भूमि वाले क्षेत्रों के किसानों द्वारा उगाए जाएंगे, यदि इनसे होने वाला लाभ उनकी आय के मौजूदा स्तर से अधिक रहता है। फि‍लहाल चिली, मैक्सिको, ब्राजील, मोरक्को और कई अन्य देशों के अनुभवों को परखा जा रहा है जो इस उद्देश्य की प्राप्ति में काफी मददगार साबित होंगे।