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क्या प्रियंका मध्य प्रदेश से लड़ेंगी अपना पहला चुनाव?

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त्रिदीब रमण।
’घर से निकल रहे हो तो अपने सायों को भी साथ ले लो
जिन्हें धुंधला दिखता है अब, उन बूढ़ी मां का आशीर्वाद भी ले लो
सफर में तो राहों में धूप होगी, मंजिलें भी मजबूर होंगी
पांवों में छाले होंगे, तुमसे नाराज़ तेरे चाहने वाले होंगे’
सियासत में उम्मीदों की धूप-छांव की अपनी पुरानी रवायत है, इसे गांधी परिवार भी बखूबी समझता है। सो, राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ने के लिए प्रियंका गांधी और उनके परिवार ने मध्य प्रदेश का चयन बहुत सोच समझ कर किया। राहुल की यात्रा जब खंडवा पहुंची तो पहली बार प्रियंका अपने पति रॉबर्ट और पुत्र रेहान के साथ इस यात्रा में शामिल हुईं। जब यह यात्रा महु पहुंचेगी तो इसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल होंगे। सूत्रों की मानें तो प्रियंका को 2024 के लिए लोकसभा की एक अदद सीट की तलाश है जो उन्हें निराश न करे। वैसे भी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सरीखे पार्टी दिग्गज पहले ही प्रियंका को मध्य प्रदेश से राज्यसभा में भेजे जाने की वकालत कर चुके हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस को मध्य प्रदेश में एक युवा नेतृत्व की दरकार है, क्योंकि यहां के दोनों दिग्गज कांग्रेसी नेता यानी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह उम्रदराज हो गए हैं। अगर 2024 में राम मंदिर बन कर तैयार हो जाता है तो उत्तर प्रदेश में कमल के ‘पूर्ण प्रस्फुटन’ की जमीन तैयार हो सकती है, ऐसे में प्रियंका भी अमेठी या रायबरेली के दुरूह किले को भेदने का जोखिम नहीं उठाना चाहेंगी। शायद यही वजह है कि राहुल गांधी भी मध्य प्रदेश में झूम-झूम कर बरस रहे हैं, वे कांग्रेस के कोर वोटर रहे आदिवासी समाज का मुद्दा भी जोर शोर से उठा रहे हैं और उनके पीछे प्रदेश का कांग्रेस संगठन भी एकजुट नज़र आ रहा है।

राहुल ने किन दो पत्रकारों को चुना
अपनी भारत जोड़ो यात्रा में राहुल ने घोषित नामचीन पत्रकारों या टीवी एंकरों को इंटरव्यू देने के बजाए, दो यु-ट्यूर्ब्स के साथ खुल कर अपने दिल की बात शेयर की। इनमें से एक हैं श्याम मीरा सिंह, जिन्होंने अदानी समूह की अनापेक्षित उड़ान और पुलवामा पर रिसर्च कर प्रोग्राम बनाया। दूसरे हैं समदीश भाटिया, जिन्होंने अपने चैनल ’अनफिल्टरड बाय समदीश’ के लिए हंसोड़ तरीके से राहुल का इंटरव्यू लिया, यात्रा में उनके साथ-साथ चलते। ये दोनों इंटरव्यू तय कराने में योगेंद्र यादव और कन्हैया कुमार की एक महती भूमिका मानी जा रही है। माना जा रहा है कि कन्हैया कुमार को उनकी मेहनत का फल भी जल्द मिलने जा रहा है, वे बिहार प्रदेश के नए अध्यक्ष हो सकते हैं, योगेंद्र यादव को भी संगठन में कोई महती जिम्मेदारी मिल सकती है।

भाजपा में हिंदुत्व के सबसे बड़े चैंपियन योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने के लिए असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा कमर कस चुके हैं। सरमा को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बेहद करीबी माना जाता है। वैसे भी सरमा अक्सर अजीबोगरीब बयान देकर सुर्खियों की सवारी गांठते रहते हैं। राहुल गांधी की यात्रा के दौरान उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी को लेकर उन्होंने राहुल की शक्ल सद्दाम हुसैन से मिला दी तो कांग्रेस की ओर से उन्हें भी चुनौती मिली कि वे भाषा की मर्यादा का उल्लंघन न करें। सूत्रों की मानें तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही उन्हें धीरे-धीरे योगी की काट के तौर पर हिंदुत्व के नए चैंपियन के तौर पर उभार रहा है ताकि वे पार्टी की दूसरी पांत के नेताओं में सर्वप्रमुखता से अपनी जगह बना सकें। वहीं योगी हैं कि मोदी के बाद उनकी चुनावी सभाओं की सबसे ज्यादा डिमांड होती है, सो कर्नाटक हो या केरल, नार्थ ईस्ट हो या ओडिशा, यहां तक कि मोदी-शाह के गृह राज्य गुजरात में भी योगी की सबसे ज्यादा डिमांड बताई जाती है, षायद यही बात पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पेशानियों पर बल ला रही है। सो, सरमा को योगी के विकल्प के तौर पर पेश करने की जद्दोजहद हो रही है।

कांग्रेस को आगे बढ़ाती भाजपा
दिल्ली के स्थानीय निकाय के चुनाव बेहद दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गए हैं, प्रारंभिक रुझानों में दिल्ली नगर निगम के चुनाव में डेढ़ सौ से ज्यादा सीटों पर आप की बढ़त बताई जा रही है। यहां आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच सीधी टक्कर बताई जाती है, कांग्रेस के प्रत्याशी तो मुख्य लड़ाई में शामिल होने के लिए भी मशक्कत करते नज़र आ रहे हैं। अब भाजपा ने दिल्ली में एक नया दांव चल दिया है, अब पार्टी भीतरखाने से कांग्रेसी उम्मीदवारों की मदद करने लगी है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को लड़ाई में लाने के लिए भाजपा न केवल अपनी थैली का मुंह खोल रही है, बल्कि उनके लोग भी कांग्रेसी टोपी लगा कांग्रेसी उम्मीदवारों के प्रचार में जुट गए हैं। ऐसा ही एक मामला दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में भी देखने को मिला। भाजपा का मानना है कि ’जितना कांग्रेस बढ़ेगी वह आप का वोट काटेगी, इससे भाजपा के लिए एडवांटेज की स्थिति बन सकती है।’

केजरीवाल का बवाल
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को भली-भांति इस बात का इल्म है कि दिल्ली नगर निगम चुनाव में जीत उनकी पार्टी के नव अभ्युदय के लिए कितना मायने रखती है। सो, जब दिल्ली में उन्हें अपने घर के बर्तनों की आवाज सुनाई दी तो वे सब छोड़-छाड़ कर यानी गुजरात का चुनाव प्रचार अधबीच छोड़ दिल्ली लौट आए और यहां के चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। चतुर सुजान केजरीवाल जानते हैं कि गुजरात में इस बार उनकी पार्टी कोई बड़ा धमाल नहीं मचा सकती, पर दिल्ली में अपने मेयर जरूर बना सकती है। सो भाजपा को घेरने के लिए दिल्ली में आप स्थानीय मुद्दे उठा रही है, मसलन दिल्ली में जगह-जगह बनते कूड़े के पहाड़, सफाई और स्वच्छता, बंदरों का आतंक और लावारिस कुत्ते जैसे लोल मुद्दे। वहीं भाजपा अपने प्रचार के लिए अन्य प्रदेशों से अपने मुख्यमंत्रियों को लेकर दिल्ली आ रही है, जिन्हें दिल्ली के स्थानीय मुद्दों का कोई खास इल्म नहीं। सो, अब लौट के भाजपा अपने जिताऊ चेहरे पर आ गई है यानी अब दिल्ली का नगर निगम चुनाव भी मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा, जो 2014 के बाद से लगातार भगवा पार्टी के लिए चुनाव जितवाने की सबसे बड़ी गारंटी लेकर आए हैं।

तेजस्वी के प्रभाव में लालू
अपने इलाज के लिए सिंगापुर रवाना होने से पूर्व राजद सुप्रीमो लालू यादव ने जो अपनी नई टीम की घोषणा की है, इस नई टीम पर उनके पुत्र और उनके राजनैतिक वारिस तेजस्वी यादव का साफ प्रभाव झलकता है। लालू से अलहदा तेजस्वी अपनी पार्टी में किंचित साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को आगे बढ़ाने के हिमायती जान पड़ते हैं। लालू ने 85 सदस्यीय नई कार्यकारिणी की घोषणा की, राष्ट्रीय पदाधिकारियों की उनकी नई टीम में 10 यादव और मात्र 3 मुस्लिम चेहरों को जगह मिली है। जिन 10 नेताओं को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है, उसमें भी मात्र एक मुस्लिम चेहरा सैयद फैसल अली के रूप में षामिल है। इससे पहले जब गोपालगंज में उप चुनाव हो रहे थे तो तेजस्वी ने दुर्दांत बाहुबली शहाबुद्दीन की बेवा हिना शहाब के साथ मंच शेयर करने से मना कर दिया था। जबकि हिना अपने 50 गाड़ियों के लाव-लष्कर के साथ राजद की रैली में शामिल होने के लिए गोपालगंज के लिए निकल गई थीं, पर तेजस्वी की ’ना’ के बाद उन्हें बीच रास्ते से ही लौट जाना पड़ा। नाराज़ होकर उन्होंने ओवैसी की पार्टी से अपना एक उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया जो 12 हजार से ज्यादा वोट लेकर आया और तेजस्वी की पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार मात्र 1800 वोटों से चुनाव हार गए। बावजूद इसके तेजस्वी ने एक नज़ीर पेश करने की कोशिश की है।