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वन्यजीवन पर फिल्म बनाना करियर नहीं बल्कि प्रतिबद्धता है : राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता: सुब्बैया नल्लामुथु

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“वन्यजीवन पर फिल्म बनाने में आने वाले अधिकांश युवाओं में प्रतिबद्धता की कमी है”

पांच बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता और वन्यजीवन पर फिल्म निर्माता सुब्बैया नल्लामुथु ने कहा है कि वन्यजीवन पर फिल्म निर्माण एक करियर नहीं बल्कि एक ऐसी प्रतिबद्धता है, जिसे हर कोई पूरा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि वह सभी को वन्यजीवन फिल्म निर्माण में आने के लिए प्रोत्साहित नहीं करेंगे। श्री सुब्बैया नल्लामुथु 17वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के सिलसिले में आयोजित एक मास्टर क्लास में बोल रहे थे।

वन्यजीवन फिल्म निर्माण की चुनौतियों का विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि किसी एक रोचक कहानी को प्राप्त करना और फिर उसे अंतरराष्ट्रीय चैनलों तक पहुंचाना इस काम का मुश्किल हिस्सा है। “अंतर्राष्ट्रीय चैनलों से चालू परियोजनाओं को प्राप्त करना ही बहुत कठिन है। इसलिए मेरी अधिकाँश परियोजनाओं का स्व- वित्त पोषित होना भी उन कारणों में से एक है I उन्होंने कहा कि इसके बाद उनके लिए शूटिंग की अनुमति प्राप्त करना, पशु कल्याण बोर्ड से मंजूरी प्राप्त करना और शूटिंग के लिए किराए पर उच्च मानकों और उच्च गुणवत्ता वाले उपकरण प्राप्त करने जैसी चुनौतियां भी हैं”।

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वन्यजीवन पर फिल्म निर्माण के वित्तीय पहलुओं के बारे में बात करते हुए, सुब्बैया नल्लामुथु ने कहा कि हालांकि वह अपनी अधिकांश फिल्मों पर किया गया निवेश वापस पाने में कामयाब रहे, लेकिन इसकी कोई गारंटी भी नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि वन्यजीवन पर वृत्तचित्र बनाना करना एक बड़ा जुआ है।

पुरस्कार विजेता अपने वृत्तचित्र ‘द वर्ल्ड्स मोस्ट फेमस टाइगर’ के निर्माण को याद करते हुए उन्होंने कहा कि इसे बनाने में एकल कैमरे का उपयोग करके 250 घंटे के फुटेज को शूट किया गया है। “एक श्रृंखला प्राप्त करके उसे लयबद्ध करने और फिर उसे एक कहानी के रूप में ढालने का पूरा विचार ही एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने आगे कहा कि फिल्म में प्रयुक्त की गई ध्वनियों अर्थात साउंड ट्रैक का 90% हिस्सा इसे बनाने के बाद की प्रक्रिया के दौरान जोड़ा गया था और वाइल्ड लाइफ ट्रैक वाला 10% भाग शूट के दौरान रिकॉर्ड किया गया था”।

सुब्बैया नल्लामुथु ने युवाओं की आलोचना करते हुए कहा कि उनमें से अधिकांश ने डीएसएलआर कैमरे के साथ वन में जाकर ऑटो मोड में कुछ शूट करना चाहते हैं और फिर छह महीने में पैसा कमा लेना चाहते हैं; जो कि संभव नहीं है। ऐसे में अगर कहानी ही परिपूर्ण नहीं है तो फिर कोई भी इसे खरीदने का इच्छुक नहीं होगा। इसके लिए तो समग्र प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि दुर्भाग्य से हमारे युवाओं में इस तरह की प्रतिबद्धता का अभाव है”।

वृत्तचित्र के लिए रॉयल बंगाल टाइगर को अपने विषय के रूप में चुनने के कारण का उत्तर देते हुए,सुब्बैया ने कहा कि चूंकि बाघ एक करिश्माई पशु है, इसलिए इस पर कहानी बिकेगी ही और इसे बनाने में लगी भारी भरकम धनराशि को वापस मिलने में भी सहायता मिलेगी। “लेकिन मैंने अन्य पशुओं पर भी पुरस्कार विजेता वृत्तचित्र तैयार किए हैं, जिनके बारे में अधिकतर लोगों को जानकारी नहीं है”। उन्होंने टाइगर पर एक बड़ी फीचर फिल्म बनाने की अपनी योजना का भी खुलासा किया। इस मास्टर क्लास के दौरान सुब्बैया के वृत्तचित्र ‘द वर्ल्ड्स मोस्ट फेमस टाइगर’ का भी प्रदर्शन किया गया ।

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