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राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक ने कार्यकारी समिति की 42वीं बैठक की अध्यक्षता की और 660 करोड़ रुपये की 11 परियोजनाओं को मंजूरी दी

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कार्यकारिणी ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में हिंडन नदी के लिए 135 एमएलडी एसटीपी परियोजना को मंजूरी दी

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की कार्यकारिणी की 42वीं बैठक एनएमसीजी के महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार की अध्‍यक्षता में 19 मई 2022 को आयोजित की गई। इस बैठक के दौरान समिति ने लगभग 660 रुपये की अनुमानित लागत वाली 11 परियोजनाओं को मंजूरी दी। जिन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई उनमें हिंडन नदी को ‘सहारनपुर टाउन के लिए रोकने, रास्‍ता बदलने और शोधन कार्य’, गढ़ मुक्तेश्वर में ‘चामुंडा माई तालाब का कायाकल्प’, मंदसौर, मध्य प्रदेश में ‘शिवना नदी का पर्यावरण उन्नयन’, जल और ऊर्जा की बचत पर प्राकृतिक खेती कार्यों का ‘मूल्यांकन’ और मेमब्रेन आधारित मिट्टी रहित कृषि का कार्यान्वयन’ शामिल हैं। कल्याणी, पश्चिम बंगाल में ‘इलेक्ट्रिक श्मशान का निर्माण’ और पौढ़ी गढ़वाल में ‘श्मशान घाट का विकास’ सहित श्मशान से संबंधित दो परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई। इसके अलावा बद्रीनाथ में रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की दो परियोजनाओं को भी हरी झंडी दी गई। उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में सीवेज प्रबंधन की दो बड़ी परियोजनाओं को भी बैठक में मंजूरी दी गई।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हिंडन नदी की सफाई के लिए सीवेज प्रबंधन की एक बड़ी परियोजना को मंजूरी दी गई। इस परियोजना की अनुमानित लागत 577.23 करोड़ रुपये है जिसमें 135 एमएलडी एसटीपी का निर्माण, अवरोधन और रास्‍ता बदलने की संरचनाओं का निर्माण और सीवर लाइन बिछाना आदि शामिल हैं। इसे कार्यकारिणी की बैठक के दौरान मंजूरी दी गई। नमामि गंगे कार्यक्रम का मुख्य फोकस गंगा की सहायक नदियों की सफाई करना रहा है।

इस कार्यकारी समिति की 42वीं बैठक में कार्यकारी निदेशक (प्रशासन), श्री एस.पी. वशिष्ठ, एनएमसीजी के उप महानिदेशक श्री भास्‍कर दासगुप्‍ता, कार्यकारी निदेशक (वित्त), श्री एस.आर. मीणा और जल शक्ति मंत्रालय जेएस एंड एफए, डीओडब्‍ल्‍यूआर, आरडी एंड जीआर श्रीमती ऋचा मिश्रा सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।

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प्रभावी विकेन्‍द्रीकृत बेकार पानी के शोधन के लिए मल कीचड़ और सीवेज प्रबंधन की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, एनएमसीजी ने बैठक में सीवेज प्रबंधन की दो परियोजनाओं  को मंजूरी दे दी। जबकि एक परियोजना ‘हरिद्वार के मौजूदा एसटीपी (150 केएलडी), ऋषिकेश (50 केएलडी), श्रीनगर (30 केएलडी) और देव प्रयाग (5 केएलडी) सीवेज के सह-शोधन के लिए ‘उत्तराखंड राज्य को कवर करती हैं, एक अन्य परियोजना’ बर्धवान नगर पालिका के लिए एकीकृत सीवेज शोधन संयंत्र’  पश्चिम बंगाल में गंगा की एक सहायक बांका नदी में सीवेज के प्रवाह की रोकथाम पर केन्‍द्रित है। इन परियोजनाओं की अनुमानित लागत क्रमशः 8.6 करोड़ रुपये और 6.46 करोड़ रुपये है, जिसमें 5 साल के लिए मल कीचड़ शोधन संयंत्रों (एफएसटीपी) का संचालन और रख-रखाव शामिल हैं। इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य बिना सीवर वाले इलाकों से अशोधित सीवेज को बहने से रोककर गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में और सुधार करना है।

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में 28.68 करोड़ रुपये की लागत से ‘शिवना नदी के पर्यावरण उन्नयन’ के प्रमुख घटक में किसी एक स्रोत से होने वाले और किसी बड़े स्रोत से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम, घाट का निर्माण, श्मशान का विकास और मूर्ति विसर्जन की सुविधा शामिल है। इस परियोजना में नदी में प्रदूषण को रोकना और शिवना नदी की पर्यावरणीय स्थिति में सुधार करना है।

‘चामुंडा माई तालाब के कायाकल्प’ की परियोजना में 81.76 लाख रुपये की अनुमानित लागत से सफाई, गाद निकालना, पानी निकालना, आधारभूत निर्मित आर्द्रभूमि प्रणाली, जल शोधन, वायु में मिलाने की प्रणाली, वृक्षारोपण, बाड़ लगाना, कांटेदार तार आदि लगाना शामिल हैं। यह गांव के समग्र सौंदर्य और स्वच्छता में भी सुधार करेगा। पुनरुद्धार किए जाने वाले तालाब का कुल क्षेत्रफल लगभग 10,626 वर्ग मीटर है।

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स्वच्छ गंगा कोष के तहत बद्रीनाथ, उत्तराखंड में नदी के मुहाने के विकास की दो परियोजनाओं को 32.15 करोड़ रुपये की लागत से स्वीकृत किया गया है। इनमें से एक परियोजना में नदी तटबंध का निर्माण, सैरगाह, सार्वजनिक सुविधाएं जैसे पेयजल सुविधा, सार्वजनिक शौचालय, गंगा नदी के किनारे बैठने की जगह, मंडप और घाट आदि शामिल हैं। श्मशान से संबंधित दो परियोजनाओं कल्याणी, पश्चिम बंगाल में ‘इलेक्ट्रिक श्मशान घाट का निर्माण’ (4.20 करोड़) और पौड़ी गढ़वाल में ‘श्मशान घाट का विकास’ (1.82 करोड़) को भी मंजूरी दी गई।

‘जल और ऊर्जा बचत पर प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का मूल्यांकन’ पर एक महत्वपूर्ण परियोजना को भी मंजूरी दी गई है। जल और भूमि प्रबंधन प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (डब्‍ल्‍यूएएलएएमटीएआरआई) द्वारा कार्यान्वित की जाने वाली परियोजना का मुख्य उद्देश्य, मिट्टी की उर्वरता, फसल उत्पादकता और समग्र लाभप्रदता पर प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के प्रभाव का आकलन करना और क्षेत्र प्रदर्शन पर विशिष्‍ट तरीके से तैयार प्रशिक्षण और कार्यशालाओं के माध्यम से विभिन्न हितधारकों को प्राकृतिक कृषि प्रथाओं पर ज्ञान और जानकारी का प्रसार करने के लिए पानी और ऊर्जा बचत पर प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के प्रभाव का अध्ययन करना है।

नमामि गंगा मिशन का उद्देश्य गंगा नदी के किनारे कृषि कार्यों को प्राकृतिक और जैविक बनाना, किसानों की आय में सुधार करना और नदी से जुड़े पर्यावरण, मिट्टी, पानी व जैव विविधता का संरक्षण करना है। दिसम्‍बर 2019 में आयोजित पहली राष्ट्रीय गंगा परिषद (एनजीसी) की बैठक में 2019 में, माननीय प्रधानमंत्री ने निर्देश दिया था कि नमामि गंगे को गंगा कायाकल्प के साथ बेसिन में लोगों को एकीकृत करने के लिए निरन्‍तर आर्थिक विकास – “अर्थ गंगा” के एक मॉडल में तब्‍दील होकर नेतृत्व करना चाहिए। यह प्रस्‍तावित अध्‍ययन प्राकृतिक खेती पर आधारित, किसानों के लिए अधिक फायदेमंद आर्थिक मॉडल तैयार करने में मदद करेगा जिससे ‘अर्थ गंगा’ को मजबूती मिलेगी।

एक प्रायोगिक परियोजना- ‘अर्थ गंगा फ्रेमवर्क के तहत मेमब्रेन आधारित मिट्टी रहित कृषि प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन– को भी दो चरणों में निष्पादित किया जाएगा। इस परियोजना का लक्ष्य इस ढांचे का उपयोग करके 1000 एकड़ खेती को सक्षम करना है और 15 विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 15 स्थानों पर प्रौद्योगिकी प्रदर्शन खेतों की परिकल्पना की गई है और आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए 75 स्थानों पर प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन करने के लिए 60 अतिरिक्त स्‍थानों की पहचान की गई है।