मासिक ‘वेबिनार विद यूनिवर्सिटीज’ श्रृंखला का यह छठा संस्करण ‘इग्निटिंग यंग माइंड्स, रिजुवेनेटिंग रिवर’ विषय पर आधारित है
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत में जल को एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन के रूप में देखा जा रहा है: डीजी, एनएमसीजी
डीजी, एनएमसीजी ने युवाओं से पानी के लिए सर्कुलर इकोनॉमी की 5 आर – रिड्यूस (जल की बर्बादी रोकना), रिसाइकिल (जल का पुनर्चक्रण), रियूज (जल का फिर से इस्तेमाल), रिजुवेनेट (जल स्त्रोतों का कायाकल्प), रेस्पेक्ट (जल का सम्मान) की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया
स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) ने एपीएसी न्यूज नेटवर्क के सहयोग से आज ‘इग्निटिंग यंग माइंड्स, रिजुवेनेटिंग रिवर’ विषय पर मासिक ‘वेबिनार विद यूनिवर्सिटीज’ श्रृंखला के छठे संस्करण का आयोजन किया। वेबिनार का विषय ‘अपशिष्ट जल प्रबंधन’ था। सत्र की अध्यक्षता एनएमसीजी के महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार ने की। अपने मुख्य भाषण की शुरुआत श्री जी. अशोक कुमार ने देश भर में उभर रहे कुछ वैसे मुद्दों पर कुछ प्रकाश डालते हुए की जो जल सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं और जलवायु परिवर्तन के रूप में तेजी से प्रकट हो रहे हैं जो अब स्पष्ट तौर पर सामने हैं। उन्होंने जल क्षेत्र से संबंधित मुद्दों के समाधान खोजने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया ताकि अगली पीढ़ी को ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।
डीजी एनएमसीजी ने कहा कि, “2014 में प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया जो काफी सफल रहा। 2019 में, जल से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले विभिन्न विभागों का विलय कर जल शक्ति मंत्रालय बना दिया गया ताकि जल से जुड़ी चुनौतियों से समग्र रूप से निपटा जा सके। इसके बाद जल शक्ति अभियान -1 और जल शक्ति अभियान -2 का शुभारंभ किया गया। इसके तहत कैच द रेन, व्हेयर इट फॉल्स, व्हेन इट फॉल्स लागू किया गया जो संपत्ति निर्माण एवं जागरूकता सृजन और वर्षा जल संचयन पर केंद्रित था। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत में जल को एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन के रूप में देखा जा रहा है।“
श्री जी. अशोक कुमार ने अपशिष्ट जल प्रबंधन के महत्व पर जोर देते हुए इज़राइल और सिंगापुर जैसे देशों का उदाहरण दिया, जो पानी के पुनर्चक्रण और इसके फिर से उपयोग के क्षेत्र में कुछ उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि, “प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं; हमें केवल अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार इनके साथ काम करने की जरूरत है।” उन्होंने यह भी बताया कि “सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक कृषि क्षेत्र है जिसमें हमारे 80% से अधिक जल संसाधनों का इस्तेमाल होता है। कृषि जैसे गैर-पीने योग्य उद्देश्यों के लिए उपचारित पानी का पुन: उपयोग करना आज समय की मांग है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि अगली पीढ़ी को पानी मिलता रहे। ”
डीजी, एनएमसीजी श्री कुमार ने आगे कहा कि कीचड़ और उपचारित पानी का मुद्रीकरण ‘अर्थ गंगा’ के बैनर तले नमामि गंगे कार्यक्रम के फोकस क्षेत्रों में से एक है, जिसका अर्थ है ‘अर्थशास्त्र के पुल’ के माध्यम से लोगों को गंगा से जोड़ना। उन्होंने बताया कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 25000 करोड़ रुपये की लागत से करीब 164 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया जा रहा है जो लगभग 5000 एमएलडी अपशिष्ट जल के उपचार में काम आएगा और इसके परिणामस्वरूप ताजा पानी के संसाधनों की बड़ी बचत होगी। श्री कुमार ने युवा पीढ़ी को सर्कुलर इकोनॉमी की 5 आर अवधारणा का पालन करने का आह्वान किया जिसमें जल की बर्बादी को कम करना, पानी का पुनर्चक्रण, पानी का पुन: उपयोग, नदियों का कायाकल्प करना और सबसे महत्वपूर्ण, पानी का सम्मान करना शामिल है।
सत्र में भाग लेने वाले प्रमुख शिक्षाविदों में श्री आदित्य बेरलिया, सह-संस्थापक, एपीजे एडुकेशन, नई दिल्ली, प्रो. श्रीहरि प्रकाश होनवाड़, अध्यक्ष, सर पदमपत सिंघानिया विश्वविद्यालय, उदयपुर, डॉ. सुजाता शाही, कुलपति, आईआईएलएम विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, और प्रो. नवीन सिंघल, डीन और समन्वयक, उत्कृष्टता केंद्र “एलएडब्ल्यू” भूमि, वायु और जल, डीआईटी विश्वविद्यालय, देहरादून भी शामिल रहे। श्री एस. आर. मीना, उप महानिदेशक, एनएमसीजी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। इस वेबिनार में चितकारा स्कूल ऑफ बिजनेस और एपीजे के छात्र भी शामिल हुए और अपशिष्ट जल प्रबंधन के मुद्दों पर एनएमसीजी के साथ बातचीत की।
प्रमुख शिक्षाविदों में श्री आदित्य बेरलिया और डॉ. सुजाता शाही ने इस कार्य की व्यापकता और देश के जल संसाधनों को स्वच्छ रखने में युवा पीढ़ी की भूमिका पर जोर दिया। श्री बेरलिया ने कहा कि इस काम में जागरूकता पैदा करना और समुदायिक नेतृत्व वाले प्रयास की जरूरत प्रमुखता से है। उन्होंने कहा, “गंगा नदी के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के अलावा, हमें नदी से मिलने वाले आर्थिक लाभों पर भी ध्यान देना चाहिए।”
डॉ. शाही ने बताया कि नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम के लिए युवा पीढ़ी में सामाजिक और व्यावहारिक बदलाव आवश्यक है और यह उचित संवाद द्वारा लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि नदी के कायाकल्प के मुद्दों पर लोगों में चेतना जगाने के लिए कहानी सुनाने से लेकर आमने-सामने के संवाद तक सूचनाओं का लक्षित प्रसार किया जाना चाहिए तभी वांछित बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह के मुद्दों से निपटने के लिए एक “उद्यमी दृष्टिकोण” होना चाहिए। प्रो. नवीन सिंघल ने नमामि गंगे को जन आंदोलन बनाने के लिए युवा नेताओं की जिम्मेदारी पर भी जोर दिया।
प्रो. श्रीहरि प्रकाश होनवाड ने कुछ अंतरराष्ट्रीय नदियों और नदी के कायाकल्प सहित पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर चल रहे अभियानों का उदाहरण दिया और कहा कि “स्वच्छता के प्रति एक जागरूक पीढ़ी” तैयार करने की आवश्यकता है और बाकी सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। श्री होनवाड ने कहा कि, “हमें स्कूलों में जाना चाहिए और छात्रों में हमें इस चेतना का निर्माण करना चाहिए। हमें युवा पीढ़ी को बताना चाहिए कि हम पर्याप्त काम नहीं कर सके और इसे ठीक करने में आप हमारी मदद करें ताकि हम संसाधन (प्राकृतिक) आपको वापस कर सकें।”